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आचारदिनकर (भाग-२) | काउसग्ग | ११ | ६
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान ६ | ६ | ६ | ६ ३ ३
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काल ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ | १८ | १६ २० अध्ययन ८ ६ | १० ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | प्र.श्रु.स.
अ.नं. उद्देशक | ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० | काउसग्ग | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ २
अब सूत्रकृतांग के द्वितीय स्कन्ध के योगोद्वहन की विधि उल्लिखित है :
प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, एक काल का ग्रहण एवं नंदीक्रिया करे। यह क्रिया द्वितीय श्रुतस्कन्ध की वाचना के उद्देश्य से की जाती है। इसके साथ ही इसमें द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम पुण्डरीक नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ चार-चार बार करे।
द्वितीय दिन :- द्वितीय दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के द्वितीय क्रियास्थान नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
तीसरे दिन :- तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तृतीय आहारपरिज्ञा नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
चौथे दिन :- चौथे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौथे प्रत्याख्यानक्रिया नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
पाँचवें दिन :- पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें अनगार नामक अध्ययन के उद्देश,
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