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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान छटें दिन - छठें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
सातवें दिन - सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के पाँचवें और छटे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। इस प्रकार द्वितीय अध्ययन तीन दिन में पूर्ण होता है।
आठवें दिन - आठवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया तृतीय शीतोष्णीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है, साथ ही इसमें तृतीय अध्ययन के पहले और दूसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही सभी क्रियाएँ पूर्ववत् नौ-नौ बार करे। - नवें दिन - नवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तृतीय अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। इस प्रकार तीसरा अध्ययन दो दिन में पूर्ण होता है।
दसवें दिन - दसवें दिन योगवाही नीवि एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया चौथे सम्यक्त्व नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है। साथ ही इसमें चौथे अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
ग्यारहवें दिन - ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप तथा एक काल का ग्रहण करे एवं चौथे अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी
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