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आचारदिनकर (भाग - २)
उद्देशक ३/४
काउसग्ग ६ ४
५ १/२
निम्नानुसार है :
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
१/२ ३/४
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अब आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योगोद्वहन की विधि
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प्रथम दिन - प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल - तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया आचारांगश्रुत के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की वाचना के उद्देश्य से की जाती है। इसमें प्रथम पिण्डैषणा नामक अध्ययन के उद्देश एवं समुद्देश की तथा प्रथम अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की भी विधि की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही नौ बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, नौ बार द्वादशावर्त्तवंदन, नौ बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन एवं नौ बार कायोत्सर्ग करे ।
द्वितीय दिन - द्वितीय दिन योगवाही नीवि तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
तृतीय दिन - तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम अध्ययन के पाँचवें और छटें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
चौथे दिन - चौथे दिन योगवाही नीवि - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम अध्ययन के सातवें और आठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
पाँचवें दिन - पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम अध्ययन के नवें और दसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
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