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आचारदिनकर (भाग-२)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान गण, व्रजादिक शाखा, चान्द्रादिक कुल, अमुक आचार्य एवं अमुक उपाध्याय का यह अमुक नाम वाला शिष्य है। इसी प्रकार साध्वी की उपस्थापना के समय उसकी प्रवर्तिनी एवं महत्तरा के नाम का उच्चारण करे। जिस दिन उपस्थापित हो उस दिन वह आयम्बिल करे और उसके पश्चात् भी चार आयम्बिल करे।
इसके पश्चात् सातमण्डली में प्रवेश करने के लिए सात आयम्बिल किए जाते हैं। सातमण्डली इस प्रकार है - १. सूत्रमण्डली २. अर्थमण्डली ३. भोजनमण्डली ४. कालमण्डली ५. आवश्यकमण्डली ६. सज्झायमण्डली और ७. संथारामण्डली - ये सात मंडली होती हैं। इस क्रम से आयम्बिल करने पर शिष्य को पूर्व साधुओं के साथ मण्डली में प्रवेश दिया जाता हैं। इसके साथ ही आवश्यक एवं दशवैकालिक सूत्र का अध्ययन कराया जाता है। दशवैकालिक के योगोद्वहन (तपस्या) करने पर दशवैकालिक का अध्ययन कराए। अल्पबुद्धि वाले शिष्य की भी दशवैकालिक के चार अध्ययनों के अध्ययन के बिना उपस्थापना नहीं होती है।
इस प्रकार वर्धमानसूरि विरचित आचारदिनकर में यतिधर्म के उत्तरायण में उपस्थापना-कीर्तन नामक बीसवाँ उदय समाप्त होता है।
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