________________
आचारदिनकर (भाग - २)
53
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
अब आवश्यकसूत्र के योगोद्वहन की विधि का वर्णन करते है :आवश्यक सूत्र में एक ही श्रुतस्कन्ध है । इसके योग में प्रथम दिन श्रुतस्कन्ध के उद्देश एवं सामायिक नामक अध्ययन के उद्देश, अर्थात् वाचना, समुद्देश, अर्थात् अर्थबोध और अनुज्ञा, अर्थात् अध्यापन की अनुमति की विधि की जाती है। इस दिन नंदी के समक्ष विधि होती है, अर्थात् नंदीक्रिया होती है और योगवाही के द्वारा आयम्बिल-तप किया जाता है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, चार बार द्वादशावर्त्तवन्दन करे, चार बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे। इसी प्रकार दूसरे दिन योगवाही निर्विकृति ( नीवि ) तप और द्वितीय चतुर्विंशतिस्तव नामक अध्ययन के उद्देश ( वाचना ), समुद्देश ( अर्थबोध ) और अनुज्ञा (अध्यापन की अनुमति ) की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे।
तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल करे तथा तृतीय वन्दन नामक अध्ययन के उद्देश ( वाचना ), समुद्देश ( अर्थबोध ) और अनुज्ञा ( अध्यापन की अनुमति ) की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे ।
चौथे दिन योगवाही निर्विकृति ( नीवि ) करे तथा चतुर्थ प्रतिक्रमण नामक अध्ययन के उद्देश ( वाचना ), समुद्देश ( अर्थबोध ) और अनुज्ञा ( अध्यापन की अनुमति ) की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे ।
पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल करे एवं कायोत्सर्ग नामक अध्ययन के उद्देश (वाचना ), समुद्देश ( अर्थबोध ) और अनुज्ञा ( अध्यापन की अनुमति ) की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org