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आचारदिनकर (भाग - २)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, चार बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, चार बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे तथा चार बार कायोत्सर्ग करे ।
दूसरे दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे तथा तीन बार कायोत्सर्ग करे ।
तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे, तथा तृतीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे । चौथे दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौथे अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। यदि योगवाही उसी दिन असंस्कृत नामक अध्ययन की तेरह गाथाओं को सम्यक् रूप से पढ़कर मुखाग्र कर लेता है, तो उसे उसी दिन उसकी अनुज्ञा दे देते है, अन्यथा तेरह गाथाएँ कण्ठस्थ होने पर दूसरे दिन आयम्बिल आदि करवाकर, अनुज्ञा देते हैं। इसकी क्रियाविधि में स्थिति के अनुसार मुखवस्त्रिका की की प्रतिलेखना, द्वादशावर्त्तवन्दन, खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन एवं कायोत्सर्ग ये सब दो-दो बार, या तीन-तीन बार करे ।
पाँचवें दिन यदि चौथे दिन असंस्कृत नामक अध्ययन सम्यक् प्रकार से पूर्ण न हो, तो पाँचवे दिन नीवि करे यदि चौथे दिन असंस्कृत नामक अध्ययन सम्यक् प्रकार से पूर्ण कर लिया गया हो, तो पाँचवे दिन आयम्बिल करे तथा चौथे अध्ययन के अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही एक बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, एक बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, एक बार सामान्य वन्दन करे एवं एक बार कायोत्सर्ग करे ।
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छटें दिन योगवाही नीवि तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे ।
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