________________
आचारदिनकर (भागग-२)
59
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करे एवं तीन बार कायोत्सर्ग करे ।
सातवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा छटें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही सभी क्रियाएँ पूर्ववत् तीन-तीन बार करे । आठवें दिन योगवाही नीवि एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
नवें दिन योगवाही आयम्बिल करे एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आठवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
दसवें दिन योगवाही नीवि एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा दसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
बारहवें दिन योगवाही नीवि - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ग्यारहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा बारहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
चौदहवें दिन योगवाही नीवि - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तेरहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org