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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान !! उन्नीसवाँ उदय !!
प्रव्रज्या विधि
आगम शास्त्र में जिनको दीक्षा प्रदान करने का निषेध किया है, उन्हें दीक्षा नहीं दी जाती है। आगमों में दीक्षा के लिए अयोग्य व्यक्ति बताए गए हैं, जैसे - पुरुषों में अठारह प्रकार के पुरुष, स्त्रियों में बीस प्रकार की स्त्रियाँ, नपुंसकों में दस प्रकार के नपुंसक, इसी प्रकार आगम में विकलांगों को भी प्रव्रज्या के लिए अयोग्य माना गया है। कहा गया है - “पुरुषों में अठारह प्रकार के पुरुष, स्त्रियों में बीस प्रकार की स्त्रियाँ, नपुंसकों में दस प्रकार के नपुंसक एवं विकलांग - ये सब प्रव्रज्या के योग्य नहीं होते हैं।" अन्य परम्परा के ग्रन्थों में भी कहा गया है - "जाति से दूषित (जुंगित), अंग से दूषित, कुल-कों से शूद्र, शिल्पी आदि संन्यास ग्रहण करने के योग्य नहीं होते हैं - यह मनु का कथन है।" हिन्दू परम्परा में कहे गए व्रत ग्रहण करने के अयोग्य व्यक्तियों को जिन प्रवचन में भी मुनि-दीक्षा के अयोग्य माना गया है। दीक्षा के अयोग्य अठारह प्रकार के पुरुष निम्न हैं :१. बाल २. वृद्ध ३. नपुंसक ४. क्लीब ५. जट्ट (जड़) ६. रोगी ७. चोर ८. राजद्रोही ६. उन्मत्त १०. अंध ११. दास १२. दुष्ट १३. मूढ़ १४. कर्जदार १५. निंदित १६. परतन्त्र १७. भृत्य और १८. शैक्षनिष्फेटिक।
आठ वर्ष तक की आयु वाले को बाल कहा जाता है। वृद्ध व्यक्ति वह है, जिसकी इन्द्रियाँ क्षीण हो गई हैं एवं कर्मेन्द्रियों के क्षीण हो जाने से जिसने जीवन की चतुर्थ अवस्था को प्राप्त कर लिया है, वह संस्तारक दीक्षा (संलेखना) के तो योग्य है, परन्तु प्रव्रज्या के योग्य नहीं है। नपुंसक का अर्थ है - जो पुरुष एवं स्त्री से भिन्न तीसरी ही काम-प्रकृति का होता है, उसे नपुंसक या षण्ढ कहते हैं। जो व्यक्ति स्त्रियों द्वारा भोग की याचना करने पर भोग के लिए समर्थ न हो, उसे क्लीब कहा गया है। जड़ उसे कहा गया है, जो भाषाजड़, क्रियाजड़ एवं शरीरजड़ हो। रोगी वह जो सदा रोगों से ग्रस्त रहता
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