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आचारदिनकर (भाग-२) .
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान आगमों का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवर्तन होता है, इसी प्रकार अंगबाह्य ग्रंथों का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता हैं और आवश्यक व्यतिरिक्त का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता है। इसमें भी आवश्यक का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग विशिष्ट कहा गया है। वह इस प्रकार है - सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान - इन सबके उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं। आवश्यक व्यतिरिक्त का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता है। इसमें भी कालिक का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता है और उत्कालिक का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा ओर अनुयोग होता है। कालिक विशेष का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता है। उत्कालिक का जो उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता है, वह निम्न प्रकार का है -
दशवैकालिक, कल्पाकल्प, चुल्लकल्पश्रुत, महाकल्पसूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, नंदी, विद्याचारण विनिश्चय, विहारकल्प, मरणविभक्ति, वीतरागश्रुत, ध्यानविभक्ति, आत्मविशुद्धि, चरणविशुद्धि (विधि), प्रमादाप्रमाद, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान - इन सबके उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं। पुनः कालिक का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग इस प्रकार का है -
उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प-बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ, ऋषिभाषित, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, विमानप्रविभक्ति, महल्लिकाविमानप्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका, विवाहचूलिका, अरुणोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, देवेन्द्रोपपात, उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, नागपरिज्ञापनिका, निरयावलिका, कल्पिका, कल्पावंतसिका, पुष्पिता, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा - इन सबके उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते है।
अंग-प्रविष्ठ का उद्देश, समुदेश, अनुज्ञा और अनुयोग किस प्रकार का है - आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृतदशांग, अनुत्तरौपपातिकदशांग, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र, दृष्टिवाद - इन सबका उद्देश, समुद्देश,
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