________________
कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम ६१९७- पे.क्र.५, पृ.८, जसविजयकृत स्तवनादिसङ्ग्रह, वि-१७१४, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ पाकाहेम ६१९८- पे.क्र. २, पृ. १-२, यशोविजयकृत पदसङ्ग्रह, वि-१९मी, संपूर्ण
पे. नाम- औपदेशिक स्वाध्याय
कुल झे.पृष्ठ-४ औपदेशिक पद
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, गा.५, आदि वाक्यः परम प्रभु सब जन सब्दे ध्यावें... पाकाहेम ६१९७- पे.क्र.७, पृ. ९, जसविजयकृत स्तवनादिसङ्ग्रह, वि-१७१४, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ पाकाहेम ६१९८- पे.क्र. ३, पृ. २, यशोविजयकृत पदसङ्ग्रह, वि-१९मी, संपूर्ण पे. नाम- औपदेशिक स्वाध्याय
कुल झे.पृष्ठ-४ औपदेशिक पद
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, गा.५, आदि वाक्यः जब लग आवइ नहीं मन ठाम तब
लग कष्ट... पाकाहेम ६१९६- पे.क्र. १, पृ. १, जसविलास-पदसङ्ग्रह, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ औपदेशिक पद
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, गा.६, आदि वाक्यः चेतन ममता छारि परीरी... पाकाहेम ६१९६- पे.क्र.२, पृ. १-२, जसविलास-पदसङ्ग्रह, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ औपदेशिक पद
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, गा.६, आदि वाक्यः चेतन ज्ञान की दृष्टि निहालो... पाकाहेम ६१९६- पे.क्र. ३, पृ. २, जसविलास-पदसङ्ग्रह, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ औपदेशिक पद
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, गा.६, आदि वाक्यः कन्त विण कहो कुण गति नारी... पाकाहेम ६१९६- पे.क्र. ४, पृ.२, जसविलास-पदसङ्ग्रह, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ औपदेशिक पद उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, गा.५, आदि वाक्यः धर्म के विलास वास ज्ञान के
महाप्रकाश... पाकाहेम ६१९६- पे.क्र. ५, पृ. २-३, जसविलास-पदसङ्ग्रह, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ औपदेशिक पाठ प्रा., पद्य, गा.१३, आदि वाक्यः भो भव्वा अथिरत्ते वियं भमणे भवम्मि भावाणं...
कृ.विः अन्त वाक्य-सव्वेसि मवद्र्यिसहावो. पातासंघवीजीर्ण ९१- पे.क्र.७, पृ. १-२, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, प्रशमरति व प्राचीनकर्मग्रन्थ आदि, संपूर्ण
पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-४७-४८. उलटे क्रम से झेरोक्ष किया गया है. प्रत विशेष- जीर्ण-अव्यवस्थित.
कुल झे.पृष्ठ-४८, डीवीडी-५८/६० औपदेशिक श्लोकसङ्ग्रह (विविध विषयक औपदेशिक श्लोकसङ्ग्रह)
सं., पद्य, पाकाहेम १२७५५- पे.क्र. १६, पृ. २९०-३१A, अनेकविधिविधान, शास्त्रीयविचारप्रकरण औपदेशिकविषय तथा सुभाषितादिसङ्ग्रह, वि-१५मी, संपूर्ण
150