Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand
View full book text
________________
कृति उपरथी प्रत माहिती सिद्धहेमशब्दानुशासन नी (सं.)लघुवृत्ति नी (सं.)व्युत्पत्तिदीपिका (व्युत्पत्तिदीपिका)
सं., गद्य, पाकाहेम १०१९८, पृ. ३८, सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्ति-षष्ठ-सप्तमाध्याय व्युत्पत्तिदीपिका-तद्धितवृत्ति, वि
१५मी, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३९ सिद्धहेमशब्दानुशासन-(मा.गु.)बालावबोध
मारुगूर्जर, गद्य,
पाकाहेम १०६७२, पृ. २२, सिद्धहेमशब्दानुशासन बालावबोध सह चतुर्थाध्याय पर्यन्त, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण सिद्धहेमशब्दानुशासन-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पातासंघवी १८९-२, पृ. १-४, सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति तृतीयाध्याय-द्वितीयापादावचूरि, प्रतिपूर्ण
प्रत विशेष- प्रथम वृत्ति पाकाहेम १०१९९, पृ. ४३, सिद्धहेमशब्दानुशासन अवचूरि द्वितीयाध्याय प्रथमपादपर्यन्त दीपिकावृत्ति, वि-१६मी,
प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ३७मुं नथी.
कुल झे.पृष्ठ-४३ सिद्धहेमशब्दानुशासन-(सं.)दीपिका टीका (दीपिका टीका)
सं., गद्य, पाकाहेम १०१९९, पृ. ४३, सिद्धहेमशब्दानुशासन अवचूरि द्वितीयाध्याय प्रथमपादपर्यन्त दीपिकावृत्ति, वि-१६मी,
प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ३७मुं नथी.
कुल झे.पृष्ठ-४३ सिद्धहेमशब्दानुशासन-(सं.)बृहद्वृत्ति (तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति), (बृहद्वृत्ति), (अष्टादशसहस्री वृत्ति), (अढारहजारी वृत्ति)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, सं., गद्य, पाताखेत ८, पृ. ३५७, हेमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति अध्याय १ थी २, प्रतिपूर्ण
डीवीडी-६१/६३ पाताखेत १८, पृ. २२८, हैमशब्दानुशासन बृहद्धृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- अङ्क-६. ८२मुं पार्नु घटे छे.
डीवीडी-६१/६३ पाताखेत ४४-१- पे.क्र. १, पृ. १२५-२६४, प्रकीर्णत्रुटितग्रन्थसङ्ग्रह (प्राचीन) १७ ग्रन्थो, संपूर्ण
पे. विशेष- त्रुटक. प्रत विशेष- कुळ ७ ज कृतियो छे.
कुल झे.पृष्ठ-२६, डीवीडी-६२/६४ पातासंघवीजीर्ण ३२, पृ. ४५७, सिद्धहेमबृहद्वृत्ति, त्रुटक प्रत विशेष- वचमां घणुं त्रुटक, अस्तव्यस्त-जीर्ण, नकामी.
डीवीडी-५६/५९ पातासंघवीजीर्ण ३५, पृ. २९२, सिद्धहेमबृहद्वृत्ति तद्धित ७मो अध्याय, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- जीर्ण.
डीवीडी-५६/५९ पातासंघवीजीर्ण ४३, पृ. २१३, शब्दानुशासनबृहद्वृत्ति-पाद २,३, त्रुटक प्रत विशेष- ताडपत्र-१३५, जीर्ण-कागळना ७८ पत्र त्रुटक.
डीवीडी-५७/६० पातासंघवीजीर्ण ५१, पृ. १७५, सिद्धहेमबृहद्वृत्ति (तद्धितपाद चारनी) , प्रतिपूर्ण
प्रत विशेष- जीर्ण, त्रुटक ने नकामी.
823

Page Navigation
1 ... 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895