Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 881
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती सं., गद्य, पाकाहेम १०७७९- पे.क्र. २, पृ. १-४, पाक्षिकविचार आदि, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५ स्थापनाद्विपञ्चाशिका पं.-पार्श्वचन्द्र, मारुगूर्जर, पद्य, गा.५२, पाकाहेम १०३६२- पे.क्र. १३, पृ. ३६-३७, मुहपत्तीछत्रीसी आदिसङ्ग्रह, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति एक खूणेथी उंदरे करडेली छे. कुल झे.पृष्ठ-५० स्थितास्थितकल्प विधि आचार्य-हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, गा.५२, आदि वाक्यः नमिऊण जिणं वीरं ठियाइकप्पं समासओ बुच्छं... पाकाहेम १२७५५- पे.क्र.८, पृ. ९०-९B, अनेकविधिविधान, शास्त्रीयविचारप्रकरण औपदेशिकविषय तथा सुभाषितादिसङ्ग्रह, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २७मुं कखा ३७मुं नथी अने ४३मुं डबल छे. पत्र-६३-६५ के एक ही ओर का झेरोक्ष है. कुल झे.पृष्ठ-४१ स्थितिस्थानकुलक आचार्य-जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, गा.१७, पाकाहेम ११०७९, पृ. १, स्थितिस्थानकुलक, वि-१७मी, संपूर्ण स्थूलभद्रस्वामिचरित्र आचार्य-जयानन्दसूरि, सं., पाकाहेम १०६४४, पृ. ११, स्थूलभद्रस्वामिचरित्र पद्य, वि-१४८२, संपूर्ण स्थूलिभद्रकथानक प्रा., पद्य, गा.१२, आदि वाक्यः इत्थ भारहि... पाताहेसं १६८- पे.क्र. ४२, पृ. ८४अ-८६अ, दशवैकालिकसूत्र, पाक्षिक सूत्रस्तोत्रवृत्ति, स्तुति स्तवनादि, संपूर्ण पे. विशेष- संपूर्ण. परन्तु पूर्णता व कृति स्पष्ट नहीं है. झेरोक्ष पत्र-४७-४९. प्रत विशेष- प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है. कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-९/१८ स्नातस्या-वीरस्तुति (वीरजिनस्तुति), (वर्धमानस्तुति) आचार्य-बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, का.४, आदि वाक्यः स्नातस्या प्रतिमस्य मेरुशिखरे... पाकाहेम १०२२- पे.क्र. ४०, पृ.७८, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं.१०१२ को भूल से नं.१०२२ लिखा गया था. असल __ में १०२२ नं.की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. पाकाहेम १०६५०- पे.क्र. २, पृ. १, भयहरस्तोत्र व स्नातस्या-वीरस्तुति, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२ पाकाहेम १२३७०- पे.क्र. ३, पृ. १, मङ्गलाष्टक आदि, वि-१५मी, संपूर्ण स्नात्र महोत्सव जुओ - महावीरजिन स्नात्र महोत्सव, स्नात्रकुसुमाञ्जलि सं.,प्रा.,अप., पद्य, आदि वाक्यः मुक्तालङ्कारविकारसारसौम्यत्वकान्तिकमनीयं.. पाताखेत २३- पे.क्र. २०, पृ. ३४०-३४१, अनेकार्थसङ्ग्रह आदि २५ ग्रन्थो, संपूर्ण डीवीडी-६१/६३ स्नानाष्टक मुनि-पङ्कजनन्दि, सं., पद्य, श्लोक८, आदि वाक्यः सन्माल्यादि यदीय सन्निधिदशा... भांका २९३- पे.क्र.७, पृ. ३७B-३८B, अर्हत्मण्डपप्रतिष्ठादि सङ्ग्रह, वि-१४६१, संपूर्ण प्रत विशेष- अधिकतम कृतियां दिगम्बर विद्वान रचित है. कुल झे.पृष्ठ-२२, डीवीडी-९१ 864

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