Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 882
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती स्यादिप्रक्रम आचार्य-अमरचन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२४४, पाकाहेम १०११५- पे.क्र.२, पृ. ११-१६, शब्दसञ्चय आदि, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२४ स्यादिसमुच्चय आचार्य-अमरचन्द्रसूरि[वायडगच्छ], सं., ग्रं.१२६७, पाकाहेम ६८६९- पे.क्र. २, पृ. ३८-६७, क्रियाकलाप तथा स्यादिसमुच्चय, वि-१४८५, संपूर्ण पे. विशेष- श्लोक-२०००. कुल झे.पृष्ठ-६७ पाकाहेम १०१०७, पृ. ३७, स्यादिसमुच्चय, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३७ पाकाहेम १०३८१, पृ. १९, स्यादिसमुच्चय, वि-१४९५, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१९ स्याद्वादचूलिका आचार्य-अमृतचन्द्राचार्य (दिगम्बर)[दिगम्बर], सं., पद्य, श्लोक३२, आदि वाक्यः अत्र स्याद्वादशुद्ध्यार्थं वस्तुतत्त्वव्यवस्थितिः... कृ.विः कुन्दकुन्दाचार्य रचित समयससार की समाप्ति विषयक उठे विचारस्वरूप यह कृति बनायी गयी है. भांका २८४, पृ. ४२, स्याद्वादचूलिका सटीक, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-७८४. अन्त में श्लोकानुक्रमणिका दी गयी है. कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-९१ स्याद्वादचूलिका-(हि.)भाषाटीका हिन्दी, गद्य, आदि वाक्यः भूयः अपि मनाक् चिन्त्यते भूयः अपि कहता... कृ.विः भाषा-प्राचीन हिन्दी. भांका २८४, पृ. ४२, स्याद्वादचूलिका सटीक, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-७८४. अन्त में श्लोकानुक्रमणिका दी गयी है. कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-९१ स्याद्वादचूलिका-(हि.)भाषाटीका हिन्दी, गद्य, आदि वाक्यः भूयः अपि मनाक् चिन्त्यते भूयः अपि कहता... कृ.विः भाषा-प्राचीन हिन्दी. भांका २८४, पृ. ४२, स्याद्वादचूलिका सटीक, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-७८४. अन्त में श्लोकानुक्रमणिका दी गयी है. कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-९१ स्याद्वादपुष्पकलिका सं., पद्य, श्लोक१४६, आदि वाक्यः नत्वा संयमवामेयं गुरुनौनिधिवाचकं... भांका १६२, पृ. ५, स्याद्वादपुष्पकलिका, वि-२०वी, संपूर्ण प्रत विशेष- भण्डारसंदर्भाक-८६९/९५-१९०२. श्लोक-१३९ तक है. कुल झे.पृष्ठ-४, डीवीडी-८६ स्याद्वादमञ्जरी टीका जुओ - अन्ययोगव्यवच्छेदवीरद्वात्रिंशिका-(सं.)स्याद्वादमञ्जरी टीका, आचार्य-मल्लिषेणाचार्य, संस्कृत, श्लोक२८०० स्याद्वादरत्नाकरवृत्ति जुओ - प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-(सं.)स्याद्वादरत्नाकरवृत्ति, आचार्य-वादिदेवसूरि, संस्कृत, ग्रं.७२८४ स्याद्वादरत्नाकरावतारिका टीका जुओ - प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-(सं.)रत्नाकरावतारिका टीका, आचार्य-रत्नप्रभसूरि, संस्कृत, ग्रं.५००० स्याद्वादविरोधपरिहारवादस्थल सं., गद्य, 865

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