Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 886
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-७६ हरिशब्दार्थगर्भित जिनस्तवन जुओ - जिनस्तवन हरिशब्दार्थगर्भित, अज्ञात-विशालराज, संस्कृत, का.१० हरिशब्दार्थगर्भित स्तम्भनपार्श्वनाथस्तोत्र जुओ - स्तम्भनपार्श्वनाथस्तोत्र हरिशब्दार्थगर्भित#, आचार्य-नयचन्द्रसूरि, संस्कृत, का.९ हरिश्चन्द्रराजकथानक जुओ - पार्श्वनाथचरित्रमहाकाव्य श्लोकबद्ध नो हिस्सो हरिश्चन्द्रराजकथानक, आचार्य-भावदेवसूरि, संस्कृत हरिस्तुति जुओ - हरिमीडेस्तोत्र, यति-शङ्कराचार्य, संस्कृत, श्लोक४४ हर्षपुरीय पार्श्वनाथस्तुति जुओ - पार्श्वनाथस्तुति हर्षपुरीय, संस्कृत, का.४ हलायुधकाव्य जुओ - कविरहस्य, जैनेतर-हलायुध भट्ट, संस्कृत, ग्रं.२९९ हस्तकाण्ड लक्षणविषयक (लक्षणविषयक हस्तकाण्ड) मुनि-पार्श्वचन्द्र, सं., पद्य, श्लोक९९, पाकाहेम ८७३- पे.क्र. १, पृ. १-४, हस्तकाण्ड, संपूर्ण पे. विशेष- ग्रन्थाग्र-१००. कुल झे.पृष्ठ-५ पाकाहेम १९६३, पृ. ३, हस्तकाण्ड, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- बीजु पत्र नथी. कुल झे.पृष्ठ-३ हस्तरेखा विज्ञान प्रा.. वताकांति ४३८, पृ.७, हस्तरेखा विज्ञान प्राकृत, संपूर्ण डीवीडी-९७/९८ हस्तसञ्जीवनी उपाध्याय-मेघविजय, सं., पद्य, श्लोक५२५, पाकाहेम १३५८०, पृ. २१, हस्तसञ्जीवनी हस्तचित्रसह, वि-१८७७, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति ऊधईए करडेली छे., सचित्र. कुल झे.पृष्ठ-१५ हस्तिपालस्वप्नफल (पुण्यपाल स्वप्नफल) सं., पद्य, श्लोक५०, पातासंघवी ६२-२- पे.क्र. १७, पृ. १०६-११०, सामाचारी आदि, संपूर्ण पे. विशेष- अक्षर अवाच्य होने से आदिवाक्य नहीं भरा गया है. प्रत विशेष- अन्ते चन्द्रशेखरसूरि जन्म पत्रिका आदि. ___ कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-३०/४९ हानर्षिगणिए हेमविमलसूरिनी शाळामां मोकलावेल प्रश्नपत्रना उत्तरो (हेमविमलसूरिनी शाळामा हानर्षिगणिए मोकलावेल प्रश्नपत्रना उत्तरो) मारुगूर्जर, गद्य, पाकाहेम ३७७०, पृ. १९, हानर्षिगणिए हेमविमलसूरिनी शाळामां मोकलावेल प्रश्नपत्रना उत्तरो, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१८ हारबद्ध पञ्चजिनस्तवन जुओ - पञ्चजिनस्तव हारबन्ध, आचार्य-कुलमण्डनसूरि, संस्कृत, श्लोक२३ हास्यचूडामणिप्रहसन कवि-वत्सराज महामात्य, सं., ग्रं.३७२, आदि वाक्यः कल्याणं वितरन्तु वः पृथुजटाजूटाग्रविस्तारिण... पाताखेत ४१-१- पे.क्र.२, पृ. २०-५१, कर्पूरचरित, हास्यचूडामणि, त्रिपुरदाह, किरातार्जुनीय,, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-६२/६४ हिंसाष्टक आचार्य-हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि वाक्यः अविधायापि हि हिंसा हिंसाफलभाजनम... 869

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