Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 856
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती सीयादेवीचरिउ (सीताचरित्र) मुनि-सागरचन्द्र, गुरु-आचार्य-वर्द्धमानसूरि, अप., आदि वाक्यः सीयचरिउ निसुणेहु... तालाद ३८४- पे.क्र.५, पृ. २९-३६, पञ्चाशकप्रकरणादि, वि-१४मी, संपूर्ण ___ कुल झे.पृष्ठ-३०, झे.रिमार्क-झेरोक्ष पृष्ट ३०+६+८+४+४+२+२ छे., डीवीडी-९४/९६ सीयाहरणु (सीता हरण) मुनि-सागरचन्द्र, गुरु-आचार्य-अकलङ्कदेवसूरि (दिगम्बर), अप., पद्य, गा.८०, आदि वाक्यः नवकारिविसुयएवि... तालाद ३८४- पे.क्र. ३, पृ. १-१६, पञ्चाशकप्रकरणादि, वि-१४मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३०, झे.रिमार्क-झेरोक्ष पृष्ट ३०+६+८+४+४+२+२ छे., डीवीडी-९४/९६ सुअधम्म (श्रुतधर्म) प्रा., पद्य, गा.१०, पातासंघवीजीर्ण ८६-२- पे.क्र. १६, पृ. ?, चैत्यवन्दनादि भाष्य आदि, वि-१३६९, त्रुटक कुल झे.पृष्ठ-६० सुकविहृदयानन्दिनी टीका जुओ - वृत्तरत्नाकर-(सं.)सुकविहृदयानन्दिनी टीका, जैनश्रावक-सोलण, संस्कृत सुकोशलकथा प्रा., पातासंघवीजीर्ण ८९- पे.क्र. ३, पृ. ३८-६७, ललितविस्तरा चैत्यवन्दनटीका आदि, वि-११८५, त्रुटक पे. विशेष- ३८ थी ६७ नं. पेज छे. त्रुटक डीवीडी-५८/६० पातासंघवी १०६-३- पे.क्र. १, पृ. १-५, सुकोशलकथा आदि, संपूर्ण पे. विशेष- अपूर्ण. प्रत विशेष- अपूर्ण. डीवीडी-३३/५१ सुकोशलचरित्र प्रा., पद्य, गा.१०७, आदि वाक्यः अह एत्तो वीसइमे जिणन्तरे वट्टमाणसमयम्मि। पाताखेत १२- पे.क्र. २२, पृ. २३१-२४०, गृहस्थकुलकादि ३४ ग्रन्थो, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-१०५. प्रत विशेष- ११५ मुं पार्नु घटे छे. डीवीडी-६१/६३ पाताखेत ५०- पे.क्र. १५, पृ. १८९-१९६, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि १५ ग्रन्थो, वि-१२१३, संपूर्ण प्रत विशेष- झेरोक्ष पत्र ७०-१,७०-२, ७०-३ आ रीते बेवडाएल छे. कुल झे.पृष्ठ-९६, डीवीडी-६२/६४ सुकोशलचरित्र अप., पद्य, रचना सं. विक्रम १३०२, आदि वाक्यः पणमं सिरिअरहन्त निरवाय विसुद्धा... पाताखेत ६- पे.क्र. ३७, पृ. २०९-२१२, उपदेशमालादि ५४ ग्रन्थो, संपूर्ण पे. नाम- सुकोसलचरित्र प्रत विशेष- शुद्ध प्रति. कुल झे.पृष्ठ-११०, डीवीडी-६१/६३ सुखबोधा टीका जुओ - आश्चर्ययोगमाला-(सं.)सुखबोधा विवृत्ति, आचार्य-गुणाकरसूरि, संस्कृत सुखबोधा टीका जुओ - औपपातिकोपाङ्गसूत्र-(सं.)सुखबोधा टीका, संस्कृत सुखबोधावृत्ति जुओ - उत्तराध्ययनसूत्र-(सं.)सुखबोधावृत्ति, आचार्य-नेमिचन्द्रसूरि, संस्कृत,प्राकृत,अपभ्रंश, ग्रं.१२००० सुखबोधासमाचारी (सामाचारी सुखबोधा) आचार्य-श्रीचन्द्रसूरि, गुरु-आचार्य-धनेश्वरसूरि, प्रा., गद्य, ग्रं.१३११, पाताहेसं १५८- पे.क्र. २, पृ. ???, साधुश्रावकसामाचारी सुखबोधा सामाचारी, आगमगत अनेक विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण 839

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