Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand
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कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम ६५३८, पृ. १२१, सूर्यप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्रवृत्ति, वि-१४९३, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१२७ पाकाहेम ६५७७, पृ. ११४, सूर्यप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र वृत्ति, वि-१४८४, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-९५००. पत्र ६७मुं डबल छे.
कुल झे.पृष्ठ-११४ पाकाहेम १००२३. पृ. १४३, सूर्यप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्र टीका, वि-१५७२, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-९५००. प्रथम पत्रमा समवसरण- सुन्दर चित्र छे. पत्र ६२-६४ भेगां छे.
कुल झे.पृष्ठ-१४४ पाकाहेम १०४७४, पृ. १६५, सूर्यप्रज्ञप्तिउपागंसूत्र वृत्ति, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- श्लोक-९५००.
कुल झे.पृष्ठ-१६६ पाकाभाभा १८, पृ. १६९, सूर्यप्रज्ञप्तिउपाङ्गसूत्रवृत्ति, वि-१७वी, संपूर्ण सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गसूत्र जुओ - सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, प्राकृत, ग्रं.२२०० सूर्यशतक
कवि-मयूर, सं., पद्य, का.१००, ग्रं.२६२,
पाकाहेम १०७००, पृ. १८, सूर्यशतक सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१४८७, संपूर्ण सूर्यशतक-(सं.)अवचूरि
गणि-हेमसमुद्रगणि[मुनिसुन्दरसूरिश], सं., गद्य,
पाकाहेम १०७००, पृ. १८, सूर्यशतक सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१४८७, संपूर्ण सूर्यशतक-(सं.)अवचूरि
गणि-हेमसमुद्रगणि[मुनिसुन्दरसूरिश], सं., गद्य,
पाकाहेम १०७००, पृ. १८, सूर्यशतक सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१४८७, संपूर्ण सेज्जन्तवियार जुओ - शय्यान्तरविचार, प्राकृत सेवालेखकाव्य-विजयप्रभसूरिप्रत्ये लखेलो लेख (विजयप्रभसूरिप्रत्ये लखेलो लेख)
सं., पद्य, श्लोक१९०, पाकाहेम ८०११, पृ.८, सेवालेखकाव्य-विजयप्रभसूरि प्रत्येलखेलो लेख, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९ सोमसुन्दरसूरिचरित्र जुओ - सोमसौभाग्यकाव्य श्लोकबद्ध, मुनि-प्रतिष्ठासोम, संस्कृत सोमसुन्दरसूरिस्तुति मारुगूर्जर, पद्य, आदि वाक्यः सिरितपगछनायग भुवणताय...
कृ.विः भाषा? पाकाहेम १११५१- पे.क्र. २, पृ. ३०-४B, महासता-सतीकुलक आदि, वि-१७मी, संपूर्ण
पे. नाम- सोमसुन्दरसूरीणांस्तुति प्रत विशेष- स्थूलाक्षर में लिखित.
कुल झे.पृष्ठ-६ सोमसौभाग्यकाव्य श्लोकबद्ध (सोमसुन्दरसूरिचरित्र)
मुनि-प्रतिष्ठासोम, सं., पद्य, रचना सं. विक्रम १५२४, पाकाहेम २०८८, पृ. २५, सोमसौभाग्य काव्य श्लोकबद्ध, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१८ पाकाहेम ८००६, पृ. ५०, सोमसौभाग्यकाव्य-सोमसुन्दरसूरिचरित्र, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५१ सौभाग्यपञ्चमीकथा पद्य
गणि-कनककुशलगणि, सं., पद्य, श्लोक१५२, पाकाहेम १०१७४, पृ. ५, सौभाग्यपञ्चमीकथा पद्य, वि-१७मी, संपूर्ण
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