Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 811
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- कोईक ग्रन्थनी व्याख्यागत कथाओ छे? डीवीडी-३४/५२ सम्यक्त्वशुद्धिप्रकरण जुओ - दर्शनशुद्धिप्रकरण, आचार्य-चन्द्रप्रभसूरि, प्राकृत सम्यक्त्वशुद्धिप्रकरण टीका जुओ - दर्शनशुद्धिप्रकरण-(सं.)टीका, गणि-विमलगणि, संस्कृत, श्लोक१२००० सम्यक्त्वसप्ततिकाप्रकरण जुओ - दर्शनसप्ततिकाप्रकरण, आचार्य-हरिभद्रसूरि, प्राकृत, गा.७० सम्यक्त्वसम्भव महाकाव्य सुलसाचरित्र जुओ - सुलसाचरित्र सम्यक्त्वसम्भव महाकाव्य, आचार्य-जयतिलकसूरि, संस्कृत, श्लोक७४१ सम्यक्त्वस्तव जुओ - सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका, प्राकृत, गा.२५ सम्यक्त्वस्वाध्याय मारुगूर्जर, पद्य, गा.१९, पाकाहेम १०२३२, पृ. २, सम्यक्त्वस्वाध्याय, वि-१६०२, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३ सम्यक्त्वारोपण विधि सं., आदि वाक्यः प्रथमं चैत्यभुवने गत्वा प्रदक्षिणात्रयं अक्षतफलभरिताञ्जलिं दत्वा शक्रस्तवं अड्ढाइज्जिसु इत्यादि भणित्वा आचार्यस्य क्षमाश्रमणं ददाति... कृ.विः अंतिमवाक्य-तदनंतरं वासा दीयंते प्रदक्षिणात्रयं च ततो वन्दनपूर्वं प्रत्याख्यानं. भांता ७०- पे.क्र. ३७, पृ. ४५०-४५०, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे. कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ पाकाहेम ५२६८- पे.क्र.७, पृ. १६-१७, सुबोधसमाचारी आदि, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१४ सम्यक्त्वोपरि विक्रमसेनचरित्र आदि कथाओ मुनि-पद्मचन्द्रसूरि शिष्य, सं., आदि वाक्यः तिसकुच्छिसरोवरकलहंसं... पातासंघवी ६५-४, पृ. ७८, सम्यक्त्वोपरि विक्रमसेन चरित्र अघट कथा पर्यन्त-४ कथाओ, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ७७मुं नथी. डीवीडी-३०/४९ सम्यक्त्वोपादविधि जुओ - सम्यक्त्वोपायविधि, आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, प्राकृत, गा.२९ सम्यक्त्वोपायविधि (सम्यक्त्वोपादविधि) आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, गा.२९, आदि वाक्यः भुवणजणवन्दणिज्जं...सम्मत्तुपायविहिं... पातासंघवी ५९-२- पे.क्र.९, पृ. ३६-४०, मोक्षोपदेशपञ्चाशत् आदि, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-२९/४८ पाकाहेम १११५३- पे.क्र. ९, पृ. ७-८, मुनिचन्द्रसूरि-चक्रेश्वरसूरि-रत्नसिंहसूरिकृत प्रकरणसङ्ग्रह, वि-१९७९, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३५ सरस्वतीकण्ठाभरण जैनेतर-भोजदेव महाराजा, सं.,प्रा., पातासंघवी १०२-१, पृ. ३०४, सरस्वतीकण्ठाभरणवृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ४-५-७-१३-१५ थी १८-२१-२९ थी ३१-४७ थी ५०-५२-५७-५९-६६-६७-७१-७२-१००-१०१ १०५ थी ११०-११६-१३७ थी १३९-१४१-१५० थी १५६-१५८-१६०-१७३-१७४-१८३-१८४-१८८-१९०-१९११९६-१९७-१९९-२००-२०३-२०५-२०७-२०९-२११-२१८-२३१-२४३-२४४-२४७ थी२४९-२५८-२६०-२६४२६५-२६७ थी २७१-२७३-२७५-२७६-२७८-२८१ थी २८४-२८६-२८८ थी २९०-२९३-२९५ थी २९८-३०१३०२ नथी. डीवीडी-३३/५१ 794

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