Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 809
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती प्रा., पद्य, गा.२५, पाकाहेम ११०५५, पृ. ३, सम्यक्त्वकुलक सस्तबक सावचूरि त्रिपाठ, वि-१६४४, संपूर्ण प्रत विशेष- सम्यक्त्वपंचविंशतिका अथवा सम्यक्त्वस्तव तरीके पण ओळखाय छे. पाकाहेम ११०५६, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका सावचूरिपञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण पाकाहेम ११०५७, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका सावचूरिपञ्चपाठ, वि-१६९२, संपूर्ण पाकाहेम ११०५८- पे.क्र. १, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका आदि, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- जीर्णप्राय. सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका-(सं.)अवचूरि सं., गद्य, पाकाहेम ११०५५, पृ. ३, सम्यक्त्वकुलक सस्तबक सावचूरि त्रिपाठ, वि-१६४४, संपूर्ण प्रत विशेष- सम्यक्त्वपंचविंशतिका अथवा सम्यक्त्वस्तव तरीके पण ओळखाय छे. पाकाहेम ११०५६, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका सावचूरिपञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण पाकाहेम ११०५७, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका सावचूरिपञ्चपाठ, वि-१६९२, संपूर्ण सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका-(मा.गु.)स्तबक मारुगूर्जर, गद्य, पाकाहेम ११०५५, पृ. ३, सम्यक्त्वकुलक सस्तबक सावचूरि त्रिपाठ, वि-१६४४, संपूर्ण प्रत विशेष- सम्यक्त्वपंचविंशतिका अथवा सम्यक्त्वस्तव तरीके पण ओळखाय छे. सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका-(मा.गु.)स्तबक मारुगूर्जर, गद्य, पाकाहेम ११०५५, पृ. ३, सम्यक्त्वकुलक सस्तबक सावचूरि त्रिपाठ, वि-१६४४, संपूर्ण प्रत विशेष- सम्यक्त्वपंचविंशतिका अथवा सम्यक्त्वस्तव तरीके पण ओळखाय छे. सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका-(सं.)अवचूरि सं., गद्य, पाकाहेम ११०५५, पृ. ३, सम्यक्त्वकुलक सस्तबक सावचूरि त्रिपाठ, वि-१६४४, संपूर्ण प्रत विशेष- सम्यक्त्वपंचविंशतिका अथवा सम्यक्त्वस्तव तरीके पण ओळखाय छे. पाकाहेम ११०५६, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका सावरिपञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण पाकाहेम ११०५७, पृ. १, सम्यक्त्वपञ्चविंशतिका सावचूरिपञ्चपाठ, वि-१६९२, संपूर्ण सम्यक्त्वप्रकरण जुओ - सम्यक्त्वकुलक, प्राकृत, गा.१७ सम्यक्त्वप्रकरण आचार्य-चन्द्रप्रभसूरि, प्रा., पद्य, पाकाहेम ८०५, पृ. २९०, सम्यक्त्वप्रकरण सह वृत्ति, वि-१४६६, पूर्णता अज्ञात प्रत विशेष- कागळ स्थूल छे, प्रति एक बाजूथी उंदरे करडेली. कुल झे.पृष्ठ-१२९ सम्यक्त्वप्रकरण-(सं.)वृत्ति आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, आचार्य-तिलकाचार्य, सं., गद्य, पाकाहेम ८०५, पृ. २९०, सम्यक्त्वप्रकरण सह वृत्ति, वि-१४६६, पूर्णता अज्ञात प्रत विशेष- कागळ स्थूल छे, प्रति एक बाजूथी उंदरे करडेली. __कुल झे.पृष्ठ-१२९ सम्यक्त्वप्रकरण-(सं.)वृत्ति आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, आचार्य-तिलकाचार्य, सं., गद्य, पाकाहेम ८०५, पृ. २९०, सम्यक्त्वप्रकरण सह वृत्ति, वि-१४६६, पूर्णता अज्ञात प्रत विशेष- कागळ स्थूल छे, प्रति एक बाजूथी उंदरे करडेली. कुल झे.पृष्ठ-१२९ सम्यक्त्वभेदप्रकरण जुओ - सम्यक्त्वकुलक, प्राकृत, गा.१७ 792

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