Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand
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कृति उपरथी प्रत माहिती सर्वज्ञसिद्धिप्रकरण
सं., पद्य, पाकाहेम ८७९४- पे.क्र. १, पृ. ?, सर्वज्ञसिद्धिप्रकरण आदि, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४ सर्वज्ञस्तुति
प्रा.,मारुगूर्जर, पद्य,
पाकाहेम ११०८२- पे.क्र. २, पृ. १, जीवदयाकुलक आदि, वि-१६मी, संपूर्ण सर्वलघुएकस्वरचित्रशब्दमय पार्श्वस्तोत्र जुओ - पार्श्वनाथस्तोत्र सर्वलघुएकस्वरचित्रशब्दमय#, मारुगूर्जर, गा.२ सर्वलब्धिविचार (सव्वलद्धिवियार), (लब्धिविचार) प्रा., गद्य, आदि वाक्यः आमोसहि १ विप्पोसहि २ खेलोसहि ३ जल्लमओसही चेवं ४...
कृ.विः अं.वाक्य-छठें छद्रेण तवोकम्मेणं बिज्जाए...खमासमणविज्जा वारणलद्धी भवति. भांता ७०- पे.क्र. ९६, पृ. १३३०-१३५A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ सर्वविरतिप्रायश्चितसक्षेप (प्रायश्चितसक्षेप)
सं., पाकाहेम ७९५१, पृ. २, सर्वविरतिप्रायश्चितसक्षेप, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३ सर्वव्यसायविधिकरणप्रक्रम (व्यसायविधिकरणप्रक्रम), (निमित्तग्रन्थ)
सं., पद्य, गा.१९१, पातासंघवी १८०-२- पे.क्र. ११, पृ. १२०-१३८, त्रिभुवनसार योगशास्त्र प्रकाशत्रण आदि, संपूर्ण पे. विशेष- गायकवाड केटलॉगमां विवेकवलास उ.१-२ आपेल छे. आ ग्रंथमा पहेलांना ११९ पत्र ने अंतनो
भाग नथी.
डीवीडी-३६/५४ सर्वव्यापिआत्मवादनिरास स्थल
सं., गद्य, आदि वाक्यः आत्मा सर्वगतो न भवति... पाकाहेम ८७९२- पे.क्र. ३, पृ. ४-६, ईश्वरजगत्कर्तृत्ववादनिरास आदि, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ सर्वसामान्य स्तोत्र
सं., पद्य, गा.२२, पातासंघवी २०६-२- पे.क्र. ४७, पृ. १३७मुं, योगशास्त्र चार प्रकाश आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३८/५५ सर्वसिद्धान्तविषमपदर्याय (निश्शेषसिद्धान्तविषमपदर्याय)
सं., गद्य, अताका ५००, पृ. ?, सर्वसिद्धान्त विशमपदपर्याय, संपूर्ण प्रत विशेष- पृष्ठ माहिती नथी.
डीवीडी-१०३/१०४ सर्वानुमानोत्थापनस्थल
सं., गद्य, आदि वाक्यः ननु भोः कोविदकुलावचूल निरवद्यहृद्यविद्या... भांका २१४-पे.क्र. २, पृ. २A-२B, अग्निशीतत्वादिवादस्थलसङ्ग्रह, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८, डीवीडी-८७ सर्वार्थनिराकरणवादस्थल सं., गद्य, आदि वाक्यः यः कश्चिदिहविपश्चित्किञ्चित्साधयति...
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