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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-५ पाकाहेम १०६५८, पृ. ७, जयतिहुयणस्तोत्र सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- जीर्णप्राय, भांका २९३- पे.क्र. ४, पृ. ७A-९B, अर्हत्मण्डपप्रतिष्ठादि सङ्ग्रह, वि-१४६१, संपूर्ण प्रत विशेष- अधिकतम कृतियां दिगम्बर विद्वान रचित है.
कुल झे.पृष्ठ-२२, डीवीडी-९१ जयतिहुअणस्तोत्र-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम १०६५८, पृ. ७, जयतिहुयणस्तोत्र सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- जीर्णप्राय, जयतिहुअणस्तोत्र-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम १०६५८, पृ.७, जयतिहुयणस्तोत्र सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- जीर्णप्राय, जयत्रिभुवनस्तोत्र जुओ - जयतिहुअणस्तोत्र, आचार्य-अभयदेवसूरि, अपभ्रंश, गा.३० जयन्तविजयमहाकाव्य
आचार्य-अभयदेवसूरि, सं., पद्य, श्लोक२२२०, पाकाहेम २६०६, पृ. ५२, जयन्तविजयमहाकाव्य, वि-१४६८, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिचारेबाजु सहेज पाणीथी भीजायेली छे.
कुल झे.पृष्ठ-५२ पाकाहेम ६६४१, पृ. ३८, जयन्तविजयमहाकाव्य, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३८ जयपायड प्रश्नव्याकरणसूत्र जुओ - प्रश्नव्याकरणसूत्र जयपायड, प्राकृत जयपाहुड प्रश्नव्याकरणसूत्र जुओ - प्रश्नव्याकरणसूत्र जयपायड, प्राकृत जयराजपुरीश पार्श्वजिनस्तवन क्रियागुप्त जुओ - पार्श्वनाथस्तवन क्रियागुप्त जयराजपुरीश, गणि-सिद्धान्तरुचि, संस्कृत,
का.१७ जयलक्ष्मीदेवीकथा शीलविषये (शीलविषये जयलक्ष्मीदेवीकथा)
प्रा., पद्य, गा.१२६, पातासंघवी १५७-१- पे.क्र. ५, पृ. ४३-५७, द्वादशकथा, विभक्तिप्रकरण, संपूर्ण
डीवीडी-३६/५३ जल्पमञ्जरी आचार्य-जिनसूरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १५२९, आदि वाक्यः वसुधानन्दनरूपं वसुधानन्दनखत्विषं...
कृ.विः रचनाप्रशस्ति नहीं है तथा कृति में कहीं भी रचनाकार का उल्लेख नहीं है. परन्तु संयोजित प्रत
भांताका-१३८ की पुष्पिका में "इति श्री जल्पमंजरी कृता तपागच्छाधिराज श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य पूज्य श्रीसुधानन्दनसूरिशिष्येण" एवं जिनरत्नकोश में सुधानन्दनसूरि शिष्य जिनसूर का स्पष्ट उल्लेख है. जैन आत्मानन्द सभा भावनगर से प्रकाशित पुस्तक में प्राच्यमुनिपुंगवविरचिता (?) तथा प्रस्तावना में
कर्ता अज्ञात का संपादकश्री ने जिक्र किया है. भांका १३८, पृ. ९, जल्पमञ्जरी, संपूर्ण प्रत विशेष- भण्डारसंदर्भाक-?/८७-९५
कुल झे.पृष्ठ-६, डीवीडी-८५ जागुलीमहाविद्या
सं..
पाकाहेम २८०१, पृ. १, जाङ्गुलीमहाविद्या, वि-१८मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- पाछल कांई बीजुं मंत्रकल्प जेवू छे.
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