Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 802
________________ समवसरणस्तव-(सं.)अवचूरि सं. गद्य, पाकाहेम ४४७२- पे क्र. ३ पृ. ११ विचारषट्त्रिशिका दण्डकप्रकरणादि वि- १६९९, संपूर्ण पे. नाम- समवसरणस्तव सह (सं.) अवचूरि, पे. विशेष - गाथा - २४. कुल झे. पृष्ठ-४ समवसरणस्तव- (सं.) अवचूरि कुल झ. पृष्ठ-१७ समवसरणस्तवन सं., गद्य, पाकाहेम ४४७२- पे.क्र. ३ पृ. ११ विचारषट्त्रिशिका दण्डकप्रकरणादि वि-१६९९ संपूर्ण पे. नाम- समवसरणस्तव सह (सं.) अवचूरि, पे. विशेष - गाथा - २४. कुल झे. पृष्ठ-४ आचार्य - जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, श्लोक३४, पाकाहेम ११३०८- पे क्र. ८ पृ. ६-७ अष्टभाषाबद्धनेमिजिनस्तवन आदि वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-९ समवसरणस्तवन (समवसरणथवण) कृति उपरथी प्रत माहिती आचार्य - कुलप्रभसूरि, प्रा., पद्य, गा. २५, आदि वाक्य: अइसयलच्छिसणाहं सिरिवीरं पणमिऊण जिणनाहं .... भांता ७०- पे.क्र. १३०, पृ. १७९A - १८०B, अर्हत्स्तोत्र आदि विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१४२७. प्रत विशेष सूचीपत्र नं.३-१५. पत्र - २५२+२-१-२५३., पेटाङ्क - १७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे. कुल - ४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५० - २५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. कुल झे. पृष्ठ ७६, डीवीडी-७२/८२ समवसरणस्तवन प्रकरण समवसरणस्थापना प्रा., पद्य, गा. २३, आदि वाक्यः पडिवन्नचरमतणुणो... पाकाहेम १०२३- पे.क्र. ५०, पृ. ११७-११८, प्रकरणस्तोत्रादिसङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष प्रति पाणीथी भींजायेली छे. कुल झ. पृष्ठ- १४५ प्रा.सं., गद्य, आदि वाक्यः जे जम्मि जुगे तणु देहमाणओ उस्सहेण धणुहाई .... भांता ७०- पे.क्र. १३१, पृ. १८०B- १८१B, अर्हत्स्तोत्र आदि विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण समवायाङ्गसूत्र - प्रत विशेष- सूचीपत्र - नं.३ - १५. पत्र - २५२+२-१-२५३., पेटाङ्क - १७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे. कुल - ४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५० २५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. कुल झे. पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ समवसरणस्थितचतुर्मुखमहावीरस्तव महावीरशब्दगर्भित# (महावीरशब्दगर्भित समवसरणस्थितचतुर्मुखमहावीरस्तव) आचार्य - वीरदेवसूरि, सं., पद्य, का. ३५, आदि वाक्यः श्रियां परं धाम गिराम..... पाकाम १२३८४- पे.क्र. २, पृ. २. नारङ्गपुरमण्डन पार्श्वजिनस्तवन आदि, दि १६७३, संपूर्ण आचार्य - सुधर्मास्वामी, प्रा. ग्रं. १६६७, पाकाहेम ९९९६, पृ. २७ समवायाङ्गसूत्र, वि-१६मी, संपूर्ण - 785 कुल झे. पृष्ठ-२७ पाकाहेम १०३६४, पृ. ३४, समवायाङ्गसूत्र, वि-१६६७, संपूर्ण कुल झ. पृष्ठ-३४

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