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कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- प्रज्ञापनोपाङ्गनी उपयोगी नोन्ध. प्रारंभिक ११ पत्र अलग से है.
कुल झे.पृष्ठ-५९० प्रज्ञापनासूत्र-(सं.)बृहद्वृत्ति
आचार्य-मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, ग्रं.१६०००, आदि वाक्यः जयति नमदमरमकुटप्रतिबिम्बच्छद्मविहितबहुरूपः। पातासंघवीजीर्ण २३, पृ. १, प्रज्ञापनावृत्ति, त्रुटक प्रत विशेष- पेज मां टुकडा छे. दरेक पानानां टुकडा छे.-नकामी
डीवीडी-५६/५९ पाकाहेम १००१६, पृ. २४७, प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्र वृत्ति, वि-१५७१, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पत्रमा क्र. ९९९०ना टिप्पणना जेधुं चित्र छे. पत्र २६मुं डबल छे.
कुल झे.पृष्ठ-२४८ पुप्रे ४०५, पृ. ५९०, प्रज्ञापनोपाङ्गसूत्र सह मलयगिरीय व प्रदेश टीका, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रज्ञापनोपाङ्गनी उपयोगी नोन्ध. प्रारंभिक ११ पत्र अलग से है.
कुल झे.पृष्ठ-५९० प्रज्ञापनासूत्र-(सं.)लघुवृत्ति (प्रदेशव्याख्या)
आचार्य-हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.३९३८, भांता ६५, पृ. ९४, प्रज्ञापनासूत्र टीका, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-२२१., ता.पत्र- १-७ आडा अवळा छे.
डीवीडी-७२/८२ पुप्रे ४०५, पृ. ५९०, प्रज्ञापनोपाङ्गसूत्र सह मलयगिरीय व प्रदेश टीका, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रज्ञापनोपाङगनी उपयोगी नोन्ध. प्रारंभिक ११ पत्र अलग से है.
कुल झे.पृष्ठ-५९० प्रज्ञापनासूत्र-(सं.)पर्याय
सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र.८, पृ. ६-७, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८४ पाकाहेम ७१११- पे.क्र. २८, पृ. ७६-७८, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८४ प्रज्ञापनातृतीयपदसङ्ग्रहणी (पन्नवणातृतीयपदसङ्ग्रहणी)
आचार्य-अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, गा.१३३, पातासंघवी ६२-२- पे.क्र. २४, पृ. १६०-१६२, सामाचारी आदि, संपूर्ण प्रत विशेष- अन्ते चन्द्रशेखरसूरि जन्म पत्रिका आदि.
कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-३०/४९ प्रज्ञापनासूत्र-(सं.)पर्याय
सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र.८, पृ. ६-७, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८४ पाकाहेम ७१११- पे.क्र. २८, पृ. ७६-७८, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८४ प्रज्ञापनासूत्र-(सं.)बृहद्वृत्ति
आचार्य-मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, ग्रं.१६०००, आदि वाक्यः जयति नमदमरमकुटप्रतिबिम्बच्छद्मविहितबहुरूपः। पातासंघवीजीर्ण २३, पृ. १, प्रज्ञापनावृत्ति, त्रुटक प्रत विशेष- पेज मां टुकडा छे. दरेक पानानां टुकडा छे.-नकामी
डीवीडी-५६/५९ पाकाहेम १००१६, पृ. २४७, प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्र वृत्ति, वि-१५७१, संपूर्ण
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