Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 2
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

View full book text
Previous | Next

Page 764
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) आवकसामाचारीवृत्ति (श्रावकसामाचारीवृत्ति ) आचार्य-तिलकसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः प्रणिपत्य जिनं वीरं श्रावकाणां विशुद्धिकृत्..... पाताहेसं १७३- पे.क्र. ३ पृ. १५१-१५९, जीतकल्पसूत्रवृत्ति आदि छ ग्रन्थो, संपूर्ण डीवीडी-९/१९ श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) टीका सं. गद्य, आदि वाक्यः येन ध्यान समन्वितेन तपसा.... पातासंघवी १८३-१, पृ. ९७ श्रावकसामाचारी व्याख्यान अपूर्ण प्रत विशेष- अपूर्ण. डीवीडी-३७/५४ श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) बीजक सं., गद्य, पातासंघवी ६२-२- पे.क्र. १, पृ. २१९, सामाचारी आदि, संपूर्ण पे. नाम विधि, तप, पच्चक्खाण आदि विविध आगमिक विचारसंग्रह प्रत विशेष- अन्ते चन्द्रशेखरसूरि जन्म पत्रिका आदि. डीवीडी-३०/४९ कुल झे. पृष्ठ-५२ श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) टीका सं., गद्य, पाकाहेम ६५९४, पृ. १७ श्रावकसामाचारीप्रकरण सह टीका, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झ. पृष्ठ- १२ झे. श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) टीका सं., गद्य, आदि वाक्यः येन ध्यान समन्वितेन तपसा.... पातासंघवी १८३-१, पृ. ९७ श्रावकसामाचारी व्याख्यान, अपूर्ण प्रत विशेष- अपूर्ण. डीवीडी-३७/५४ श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) बीजक सं. गद्य, पातासंघवी ६२-२- पे.क्र. १ पृ. २१९ सामाचारी आदि संपूर्ण पे. नाम - विधि, तप, पच्चक्खाण आदि विविध आगमिक विचारसंग्रह प्रत विशेष- अन्ते चन्द्रशेखरसूरि जन्म पत्रिका आदि. कुल झे. पृष्ठ-५२ डीवीडी-३०/४९ श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.) श्रावकसामाचारीवृत्ति ( श्रावकसामाचारीवृत्ति) आचार्य तिलकसुरि, सं. गद्य आदि वाक्यः प्रणिपत्य जिनं वीरं श्रावकाणां विशुद्धिकृत्..... " पाताहेसं १७३- पे.क्र. ३, पृ. १५१-१५९, जीतकल्पसूत्रवृत्ति आदि छ ग्रन्थो, संपूर्ण डीवीडी-९/१९ श्रावकसामाचारीवृत्ति जुओ- श्रावकसामाचारीप्रकरण- (सं.)श्रावकसामाचारीवृत्ति, आचार्य - तिलकसूरि, संस्कृत श्रावकातिचार (अतिचार - श्रावक ) मारुगूर्जर, पाकाहेम १०२२- पे.क्र. २३, पृ. ५७-६०, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष - पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं. १०१२ को भूल से नं. १०२२ लिखा गया था. असल में १०२२ नं. की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. आवकानन्दि टीका जुओ नवपदप्रकरण - (सं.) श्रावकानन्दि टीका, आचार्य जिनचन्द्रसूरि संस्कृत श्रावकानुष्ठानविधि जुओ - श्रावकषडावश्यकसूत्र (सं.) वन्दारु वृत्ति, आचार्य - देवेन्द्रसूरि, संस्कृत ग्रं. २७७० श्रावकाराधना मारुगुर्जर, पद्य, गा. १४३. - 747

Loading...

Page Navigation
1 ... 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895