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कृति उपरथी प्रत माहिती पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-४९-५०. प्रत विशेष- प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-९/१८ पाताहेसं १८९- पे.क्र. २६, पृ. १२०B-१२१B, दशवैकालिकसूत्रादि प्रकरणसङ्ग्रह, संपूर्ण
पे. नाम- सर्वज्ञोक्त दशविधधर्मलक्षण प्रत विशेष- त्रुटक. कुल पत्र-४५+१५९=२०४. इसमें दूसरे क्रम के पत्रांक १८-४६ नहीं है. कुछेक पत्रों पर
बीजक दिया हुआ है. कुछ पत्रों के आधे भाग खंडित हैं.
कुल झे.पृष्ठ-८४, डीवीडी-१०/१९ भांता ७२- पे.क्र. १५, पृ. ७७A-७८B, दशवैकालिकसूत्रनियुक्ति आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचिपत्र नं.-९४४. प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-७११.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-७३/८२ तालाद ३२६- पे.क्र.७, पृ. ६५मुं, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि प्रकरणसङ्ग्रह, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१०६, डीवीडी-९४/९६ अताका ४९७- पे.क्र. १३, पृ. १८५-१८७A, प्रकरणपुस्तिका, वि-१३०१, संपूर्ण
प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका. सचित्र.
_कुल झे.पृष्ठ-१२७, डीवीडी-१०३/१०४ पाकाहेम १०२२- पे.क्र. १७, पृ. ३५-३६, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं.१०१२ को भूल से नं.१०२२ लिखा गया था. असल
में १०२२ नं.की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. पाकाहेम १०२३- पे.क्र. ११, पृ. १६-१७, प्रकरणस्तोत्रादिसङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति पाणीथी भींजायेली छे.
कुल झे.पृष्ठ-१४५ धर्मलक्ष्मीमहत्तराभास
मुनि-आनन्द, मारुगूर्जर, पद्य, पाकाहेम १४८७६- पे.क्र. २, पृ.७, शीलोपदेशमाला,धर्मलक्ष्मीमहत्तराभास, वि-१५७३, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-५३-५७.
कुल झे.पृष्ठ-८ धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति
सं., पद्य, श्लोक१५, ग्रं.२३, पाकाहेम ७३९७, पृ. १, धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम ७३९७, पृ. १, धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम ७३९७, पृ. १, धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ धर्मविलास
उपाध्याय-मतिनन्दन गणि[खरतरगच्छ], गुरु-उपाध्याय-धर्मचन्द्र गणि[खरतरगच्छ], सं., पद्यअध्याय४उल्लास, आदि वाक्यः विश्वत्रयीजन्तुहितावहं तज्जीयात् परं ज्योतिरिदं पवित्रं... कृ.विः संघपति श्रेष्ठिवर्य जावड श्रावक के आग्रह से रचना हुई है.
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