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कृति उपरथी प्रत माहिती कायस्थितिस्तव (वीरस्तव)
सं., पद्य, आदि वाक्यः यद्दर्शनमप्राप्ता भ्रमन्ति भवसागरे यथा जीवा... पातासंघवी ५६-२- पे.क्र.८, पृ.?, उपदेशमाला आदि, वि-१३वी, संपूर्ण
पे. विशेष- यह कृति इस प्रत में उपलब्ध नहीं है. प्रत विशेष- पत्रांक अव्यवस्थित स्थिति में तथा उलटे क्रम में झेरोक्ष किया गया है.
कुल झे.पृष्ठ-२२, डीवीडी-२९/४८ कायोत्सर्गना २१ दोष
सं., गद्य, पातासंघवी १८९-१- पे.क्र.२, पृ. ५८-६०, चैत्यवन्दना-वन्दनक-प्रत्याख्यान लघुवृत्ति आदि, वि-१२९८, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५४ कारकन्यायकन्दली
यशोवर्धन, सं., तालाद ३४०, पृ. ८२, कारकन्यायकन्दली, वि-१४मी, अपूर्ण प्रत विशेष- पत्र-१, ५ अने ८० नथी.
कुल झे.पृष्ठ-३४, डीवीडी-९४/९६ कारणपदार्थ
सं., पद्य, श्लोक३६, पातासंघवी १३५-२- पे.क्र. १३, पृ. १५७-१५९, स्त्रीनिर्वाण आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३४/५३ कार्तिकादिमासानुक्रमेण जिनकल्याणकदिनस्तुतयः जुओ - जिनकल्याणकदिनस्तुतयः-कार्तिकादिमासानुक्रमेण, आचार्य
सोमसुन्दरसूरि, संस्कृत, श्लोक१०३ काल सत्तरि जुओ - कालसप्ततिकाप्रकरण, आचार्य-धर्मघोषसूरि, प्राकृत, ग्रं.९०, गा.७४ कालग्रहणविचार
सं.,प्रा., पद्य, गा.१४३. पाकाहेम १४८०३, पृ. २, कालग्रहणविचार, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४ कालग्रहणविधि जुओ - द्वितीयकालग्रहणविधि, मुनि-शीलचन्द, प्राकृत, गा.८४ कालग्रहणादिविधि
सं.प्रा., गद्य, पाकाहेम १०३४५, पृ. २, कालग्रहणादि विधि, वि-१५३०, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३ कालचक्र , प्रा., पद्य, गा.३४,
कृ.विः अन्त वाक्य- ...सूरींहि संकलिया. पातासंघवीजीर्ण ७३- पे.क्र. २, पृ. ?, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि, वि-१२७२, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति वर्ष का उल्लेख झेरोक्ष प्रत के पत्रांक-४० में कर्मस्तवभाष्य की प्रति० पुष्पिका में है.
डीवीडी-५८/६० कालचक्र सप्रपञ्च जुओ - सप्रपञ्चकालचक्र, प्राकृत, गा.२३ कालचक्रकुलक
प्रा., पद्य, गा.२७, आदि वाक्यः चत्तारि सागरोवम... तालाद ३३९- पे.क्र. २, पृ. ५९-६१, जीवविचारप्रकरणादि, वि-१५मी, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-२४.
कुल झे.पृष्ठ-२४, डीवीडी-९४/९६ पाकाहेम ७३९०- पे.क्र. २, पृ. १३, पुष्पमालाप्रकरण आदि, वि-१५मी, संपूर्ण
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