Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 11
________________ भीगडर में सम्पन्न ग्रन्थ की वासना के अवसर पर जिन सरस्वती-आराधक महान् अात्माओं का सान्निध्य प्राप्त हुआ और जिनकी सहकारिता से इस रचना का परिष्कार हया, उन सबके प्रति मैं अनन्त श्रन्दावनत हूँ। उनका जितना गुणगान किया जावे, वह कम है। प्राभारी हूँ पूज्य १०८ प्राचार्यश्री वर्षमानसागरजी महाराज और पूज्य प्रायिका १०५ श्री विशुद्धमती माताजी का जिनके आशीर्वचनों से ग्रन्थ का गौरव बढ़ा है। आर्षमार्ग-पोषक इन निःस्पृह आत्माओं के पुनीत चरणों में अपना नमोस्तु निरोशन करते हुए इनके दीका एक माती भीगन की कामना करता हूँ। प्रस्तुत ग्रन्थ को अापके सम्मुख उपस्थित करने का जटिल तथा श्रमसाध्य कार्य डॉ. चेतनप्रकाश जो पाटनी, जोधपुर ने सम्पन्न किया है। इनके श्रम का मूल्यांकन शब्दों में सम्भव नहीं। ग्रन्थ की सर्वतोमुखी प्रभावर्धन का इनका यह कार्य एक सम्पादक के श्रम से भी अधिक रहा है। आप स्व. पण्डित महेन्द्रकुमार जी पाटनी, काव्यतीर्थ, मदनगंज-किशनगढ़ के सुपुत्र हैं। आपके पिताश्री श्रीमहावीरजी में पूज्य प्राचार्यकरूप श्री श्रुतसागरजी महाराज से मुनिदीक्षा लेकर मुनि समतासागर हुए थे। उन्हीं की धरोहर 'चेतन भी पितृवत् ज्ञान व त्याग का समन्वय है। प्रापने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन एवं अनुवाद कार्य किया है। यह श्रुताराधक मनीधी सम्पूर्ण रत्नत्रय को त्वरित पाकर निर्वाण पावे यही अभिलाषा है। मेरे अनुरोध पर अन्य के मुद्रित पृष्ठों को देखकर विदुषी प्रायिका प्रशान्तमती जी ने अनेक संशोधन प्रेषित किये, जिन्हें मैंने शुद्धिपत्र में समाविष्ट किया है। एतदर्थ मैं उनका सविनय सभक्ति कृतज्ञ हूँ। इसी प्रकार पं. विनोदकुमार जी शास्त्री, सहारनपुर ने भी अपने व्यापार के कार्यों से समय निकाल कर नियमित रूप से मुद्रिन पृष्ठों का सूक्ष्म अवलोकन किया तथा अनेक संशोधन भिजवाये जिन्हें मैंने शुद्धिपत्र में संयुक्त किया है। मैं उनका हृदय से आभारी हूँ तथा उनके सर्वतोमुम्बी उत्कर्ष की कामना करता हूँ। श्रुतसेवी परम श्रद्धालु तथा निःस्पृह सेवाभावी श्री धूलचन्द हजारीलाल जैन वोरा, चावण्ड सदा मेरे कार्यों में सहायक रहते हैं। श्रीयुत श्रीपालजी भवरलालजी धक्ति , भीण्डर की प्रात्मीयता तथा त्यागवृत्ति भी मेरे उत्साह के प्रबल हेतु बने हैं। मैं इन दोनों धर्मानुरागी महानुभावों का भी अत्यन्त आभारी हैं 1 ग्राभारी हूँ श्रुतानुरागी लाला लखमीचन्दजी कागजी, सुमतप्रसादजी (वर्धमान ड्रग्स, कुचा रोठ) तथा पं. सुरेन्द्रकुमारजी (वेल्युएशन प्रॉफिसर, दरीबा कलां) दिल्ली का जिन्होंने इस अवधि में मेरा देह-उपचार कराया, जिससे मुझे 'जीवकाण्ड' का कार्य करने की विशिष्ट क्षमता प्राप्त हुई। __ ग्रन्थ का मूल्य कम रखने हेतु हमें उदार दातारों सर्वश्री हरिप्रसादजी जेजानी (नागपुर), ब्र. सुशीलाबाई जी (प्रायिका दीक्षा के उपलक्ष्य में), जवाहरलालजी सर्राफ, इन्दरमलजी शाह, सोभागमलजी मिण्टा (प्रतापगढ़), मूल चन्दजी लुहाडिया (किशनगढ़), श्रीमती अमरीबाई मोतीलालजी बाकलीवाल, श्रीमती फूलाबाई दौलतरामजी बाकलीवाल (मेड़ता सिटी) तथा श्री महावीरप्रसाद जी रांत्रका (अमदाबाद) से अर्थसहयोग प्राप्त हुआ है। हम इन सबके अतीव आभारी हैं। [१७]

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