________________
(१३) हाथ लम्बाया। यह देख ऋषिने सोचा कि-यह जरूर मुझे चाहती है। ऐसा सोच उसे उठा कर ले गया! राजा भी शापके भयसे कम्पने लगा और सहस्र गोकुल तथा दास दासी सहित वह कन्या ऋषिको अर्पण की । ऋषिने अन्य सब कन्याओंको अपनी सालीओंके स्नेहसे तपके प्रभावसे उनका कूबडापन दूर कर दिया । बस, ऋषिने अपनी तपस्या नष्ट कर दी । अब तो वह उस कन्याको अपने आश्रमस्थानमें ले गया, जोकि बनमें बनाया गया था। वहां पर उसका लालन पालन करने लगा। कन्या यौवनावस्थाको प्राप्त हुइ, और जब वह अपने रूप-लावण्यसे ऋषिके चित्तको आकर्षित करने लगी, तब ऋषिने अग्निकी साक्षी से उसके साथ पाणिग्रहण किया । ऋतुकालमें उसे कहने लगा कि-' मैं अपने मंत्र के द्वारा सिद्ध करके एक चरू तेरेको देता हूं, जिसके प्रभावसे अत्यंत सुंदर एक ब्राह्मणपुत्र तेरेको होगा।' रेणुकाने ऋषिसे कहा:- मंत्र के द्वारा एक चरू नहीं किन्तु दो चरु सिद्ध कर देना, जिससे एक ब्राह्मणपुत्र हो और दूसरा क्षत्रियपुत्र हो । क्योंकि-क्षत्रियपुत्र मेरी बहिन, जो हस्तिनापुरमें ब्याही हुइ है, उसको दूंगी।' तत्पश्चात् ऋषिने दो चरू मंत्रके द्वारा सिद्ध कर स्त्रीको दिये । तब रेणुका विचार करने लगी कि-यदि मेरा पुत्र क्षत्रिय महा शूरवीर होगा, तो इस वनवासके कष्टसे मेरी मुक्ति होगी। इस आशयसे क्षत्रियऔषध तो स्वयं ही खा गइ और ब्राह्मणऔषध अपनी बहिनके लिये हस्तिनापुर भेज दिया। वह उसने खाया ।
ऋषिकी इस पत्नीका नाम रेणुका इस लिये रक्खा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com