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अर्थात् जो जीव अपने पढानेवाले आचार्यका बहुमान करता है, जो विनयवंत होता है, समग्र गुणों करके युक्त होता है और इस प्रकार जो विद्या प्राप्त की होती है यह विद्या लोकमें सफल होती है (३७) जिस प्रकार श्रेणिक राजाने अपने सिंहासन पर चाण्डालको बैठा कर विनयके द्वारा अवनमन नामक विद्या सम्पादन की, वह सफल हुइ । अतः यहां श्रेणिक राजाकी कथा कहते हैं। . “राजगृही नगरीमें श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसको चेलणा नामक पट्टराणी थी। एकदा राणीको एकथंभा धवलगृहमें रहनेका दोहद उत्पन्न हुआ। यह बात राजाने अभयकुमारको कही। अभयकुमारने देवताका आराधन किया । देवता प्रत्यक्ष आकर खडा रहा । उसके पास एकथंभा आवास करवाया । उसकी चारों ओर चार वन बनवाये। उन चारों वनमें सर्व ऋतुके फलफूल सदैव मिले, ऐसा करके राणीको एकथंभा आवास में बैठा कर उसका दोहद पूर्ण किया। __ उस असेंमें एक मातंगकी स्त्रीको अकालमै आंबा खानेका दोहद उत्पन्न हुआ। उसके पति मातंगने अमगमन नामक विद्याके बलसे राजाके उपवनमसे सर्व आंबेकी डाल नमा कर उन परसे फल ले कर स्त्रीका दोहद पूर्ण किया। राजाने अभयकुमारको कहा कि-'आम्रवृक्षके फल रावली बाडीमेंसे किसने लिये? उस चोरको वंह निकालना चाहिये।' अभयकुमारने बडी कुंआरी कन्याको कथा कह कर वुद्धिके बलसे उस मातंग चोरको प्रकट किया और पकड लिया । उसको राजाने पूछा कि-'कोटके
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