Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ (१४०) अतएव पीछे मरना इसकी अपेक्षा पहलेही मार डाल, परन्तु मैं निर्दयी हो कर जीवघात न करूंगा । ऐसी सेठकी दृढता देखकर देवी हर्षित हुई और सेठको, उसकी स्त्रीको जीवित दिखाकर कहने लगी कि-हे सेठजी! तेरेको धन्य है, तू महा साहसिक और पुण्यवंत है। तेरा पहला ब्रत शुद्ध है या नहीं, उसकी मैंने परीक्षा की। ऐसा करते हुए तेरा जो अपराध हुआ है उसकी तू क्षमा कर, तू मेरा सच्चा स्वधर्मी भाइ है, अतः में तेरे पर उपकार करूंगी । तू श्रीजिनेश्वरकी भक्ति कर, कि जिससे तेरेको योग्य पुत्रकी प्राप्ति हो । उसका जिनदत्त नाम रखमा। ऐसा कह कर गोत्रदेवी अदृश्य हो गइ। कुछ दिन व्यतीत होनेके बाद सेठकी खीने पुत्रको जन्म दिया । जिसकी वधाइ मिली, जिससे सेठने बडा महोत्सव करके उसका जिनदत्त ऐसा नाम रक्खा । शालामें पढकर सर्व कलाओंको सीखा । धर्ममें निष्णात हुआ। यौवनवय में बडे कुलकी योग्य कन्याके साथ शादी हुइ । वह जिनदत्त पिताको वल्लभ है, नीरोगी है, नित्यप्रति देवपूजा करता है। एकदा वनमें ज्ञानी गुरु पधारे, सेठने पुत्र सहित उनके पास जाकर वंदना की। धर्मोपदेश श्रवण कर चंदन सेठने पृच्छा की कि-हे भगवन् । मेरा जिनदत्त पुत्र नीरोगी, महासुखी और सर्वका प्रीतिभाजन किस कर्मके योगसे हुआ है ? सो कहिये । तब गुरु बोले किमैं जो कहु वह सावधान हो कर सुनो । इसी नगरमें धरणा नामक वणिक रहता था, उसके वहां जिनदत्तका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160