Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 147
________________ (१४२) भावार्थ:-जब जीवको तीव्र मोहका उदय तथा अज्ञान यानि सम्यग्ज्ञानका अभाव होता है, तब वह पंचिंद्रिय जीव हो, तो भी उसको जिसमें महाभय है ऐसा, तथा तुच्छ, असार और वेदनीयरूप ऐसा एकेंद्रियत्व प्राप्त होता है । यह निश्चय जान लेना । जिस प्रकार महीसार नगरमें मोहक नामक धनवंत था, वह अत्यंत कृपण हो कर लक्ष्मी व कुटुंब पर बहुत मूर्छा रखता था । मृत्यु पा कर वह पकेंद्रियमें उत्पन्न हुआ । दीर्घकाल पर्यंत वह संसारमें रूलेगा। यहां मोहक गृहस्थकी कथा कहते हैं: महीसार नगरमें मोहक नामक कोइ गृहस्थ रहता था । उसकी स्त्रीका नाम मोहिनी था । इसके पिताकी उपार्जित लक्ष्मी बहुत थी । लक्ष्मीका मोह • अपार था । रात्रिदिवस सावधान रहता था कि-शायद मेरा धन कोइ ले जाय ? ऐसी चिंता करता हुआ गुप्त रीत्या जमीनके अंदर निधान रक्खा । फिर वहांसे उठा कर दूसरे स्थानमें संचय किया। इस प्रकार लक्ष्मीको रखनेके लिये अनेक उपाय करता, रात्रिको सोता भी नहीं। अति कृपण हो कर सारा दिन धनके लिये चिंता ही किया करता पेटपूर्ण भोजन भी लेता नहीं । मोटे व गंदे कपडे 'पहनता। किसीको दान भी नहीं देता, किसीको धन धीरता भी नहीं । लोभके वश रिश्तेदारको व गुणवंतको भी न पिछानता। ___अब सेठकी स्त्री मोहिनीको पुत्र हुआ। उसका लक्षण ऐसा नाम दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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