Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 154
________________ ( १४९) निकाल दिया और दूसरा जो वीर था वह तो सन्मागंमें चलता हुआ, धर्मकी स्थापना करता हुआ तथा पुण्य है, पाप है, वीतराग देव हैं, सुसाधु गुरु हैं इत्यादि कहता था । उसे राजाने सम्मानित किया। मर कर वह देवता होगा। अंतमें मोक्ष सुखको प्राप्त करेगा । और शूर नास्तिकवादी हो कर संसारमं बहुत कालपर्यंत भ्रमण करेगा।" अब उडतालीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैःजो निम्मलनाणचरित्तदंसणेहिं विभूसिअसरीरो । सो संसारं तरि सिद्धिपुरं पावए पुरिसो ॥ ६२ ॥ ___ अर्थात्-जो पुरुष निर्मल ज्ञान, चारित्र और दर्शनके द्वारा विभूषित शरीरवाला होता है वह पुरुष संसार समुद्रका पार पा कर मोक्ष सुख पावेगा (६२) जिस प्रकार अभयकुमार ज्ञानादिकका आराधन करके मोक्ष सुख पायेंगे । उसकी कथा इस प्रकार है: __ "मगध देशमें श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसका पुत्र एवं प्रधान अभयकुमार था । वह चार बुद्धिका निधान था, अपने पिताके राज्यको वृद्धिंगत करता था। उसे राजा राज्य देने लगा, परन्तु उसने पापके भयसे राज्यका स्वीकार नहीं किया । ___ एकदा श्रीवीरप्रभु आ कर समोसरे । उनको अभयकुमारने वंदना करके पूछा कि-हे स्वामिन् ! अंतिम राजर्षि कौन होगा ? प्रभुने कहा उदायिन राजा होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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