Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 155
________________ ( १५० ) अब, श्रेणिक राज्यको छोड कर दीक्षा नहीं लेता था जिससे अभयकुमार सोचने लगा कि यदि मैं मेरे पिताके आग्रहसे राज्य लंगा तो मेरेसे भी दीक्षा नहीं ली जा सकेगी, अतः मेरेको राज्य से कोई मतलब नहीं है, मगर मेरे पिताने मेरेसे जो यह वचन लिया हैं कि मेरी आज्ञा के बिना अन्यत्र कहीं न जाना । उसका क्या उपाय करना उसकी चिन्ता अभयकुमार करने लगा । इस अर्से में माघ महीने के किसी दिनको संध्या के समय चेलणा राणीने सरोवर के तट पर एक साधुको काउसग्ग ध्यानमें रहा हुआ देखा । तब राणी विचार करने लगी कि यह ऋषि रात्रि के समय ठंडी कैसे सहन करेगा ? इसी विचार में घर आ कर रात्रिको शय्यामें सोगई । वहां अपना हाथ खुल्ला ( सोडके बाहर ) रह गया, और जागृत हो कर देखा तो हाथ ठंडा लगा, उस समय साधु याद आ गया । अब श्रेणिक राजा सोचने लगा कि मेरा अंतेउर मुझे अनुकूल नहीं है । शेष रात्रिको अभयकुमारने आकर जुहार किया, उसे श्रेणिकने कहा कि अंतेउरको जला दो । ऐसा कह कर स्वयं राजा श्रीवीर भगवंतको पूछने के लिये गया । पीछेसे अभयकुमारने विचार किया कि अंतेउर में तो चेलणादिक महासतियां हैं, अतः आग लगाना उचित नहीं । ऐसा विचार कर एक पुराणी हस्तीशालाको आग लगा कर अभयकुमार श्रीवीरप्रभुके समोसरण प्रति चला । वहां श्रेणिकने श्रीवीर प्रभुको पूछा कि मेरी बी चेलणा सती है किंवा असती ? प्रभुने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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