Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 156
________________ कहा कि-चेडा महाराजाकी सातों पुत्रीयां सती हैं। यह श्रवण कर श्रेणिक वापिस लौटा, गांवमें आग जलती हुई देखी। रास्ते में अभयकुमार मिला, उसे राजाने पूछा कि अंतेउरको आग लगाई ? अभयकुमारने कहा कि-हा स्वामी ! आग लगाई । तब श्रेणिकने कोप करके कहा कि-तू क्यों न जल गया ? अब तू मेरेसे दूर जा। तब अभयकुमारने कहा कि-मैं आपका यही आदेश चाहता था । शीतल आगमें प्रविष्ट हो कर मैं कार्यसाधन करूंगा। ऐसा कह कर समोसरणमें जा कर श्रीवीरप्रभुके पास दीक्षा ली । राजा श्रेणिक फिर समोसरण प्रति चला । श्रेणिकके आनेके पहले ही अभयकुमार दीक्षा ले कर साधुसमुदायमें जा कर बैठे थे। उनके पास जा कर राजाने वंदना की, अपराधकी क्षमा याची। अभयकुमार ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप पाल कर सर्वार्थसिद्ध विमानमें पहुंचे । एकावतारी हो कर मोक्षमें जायेंगे।" इस प्रकार ४८ पृच्छाके उत्तर परमेश्वरने कहे । जं गोयमेण पुढे तं कहियं जिणवरेण वीरेग। भवा भावेइ सया धम्माधम्मफलं पयर्ड ॥ ६३ ॥ अडयालीसा पुच्छो तरेहिं गाहाण होइ चउसही । संखेवेणे भणिया गोयमपुच्छा महत्थावि ॥ ६४ ॥ अर्थात्-जो कुछ पुण्यपाएके फल श्रीगौतमस्वामीने पूछे, उनके उत्तर श्रीमहावीर स्वामीने दिये। वह हे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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