Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 152
________________ ( १४७) शुरने कहा ' शरीर में जीव ऐसी कोई चीज नहीं है, और जीव नहीं है तो धर्म भी नहीं है, धर्म नहीं तो परलोक भी नहीं। जिस प्रकार गांवके विना सीम नहीं, स्त्री विना पुत्र नहीं, उसी प्रकार जान लेना । अतः पृथ्वी, पाणी, आकाश, अग्नि और वायु इन पांच महाभूतोंके संयोगसे आत्मा होता है । जिस प्रकार धावडी, महुडे, गुड और पानीसे मदशक्ति उत्पन्न होती है वैसेही जान लेना। आकाशकुसुमवत् ओर कुछ भी नहीं है। तो फिर जीव कहां है कि जिसको सुखी बनानेकी वांछा की जावे ? वर्तमान कालके हस्तगत सुखको छोड कर संदेहयुक्त भविष्यत् कालके सुखकी वांछा कौन करे ? तथा सुख दुःख सर्व कर्मके योगसे होते हैं, यह बात भी अयुक्त है। क्योंकि एक पाषाण नित्य चंदन व पुष्यके द्वारा पूजा जाता है और एक पाषाणके ऊपर नित्य विष्ठा डाली जाती है अब कहिए कि पाषाणने कौनसा अच्छा या बुरा कर्म किया है ? इसी प्रकार प्राणीमात्रके लिये भी सुख दुःखका कारण कुछ भी नहीं है । तप जप कष्ट क्रिया जो कुछ किये जाते हैं वे सब क्लेशरूप व्यर्थही समझने चाहिए'। अब शिष्य उक्त बातका उत्तर देता है। 'हे शूर ! तू जो कहता है कि जीव नहीं है तो मैं पूछता हूं कि में सुखी हुं, मैं दुःखी हुं, इन बातोंका जानकार कौन है ? चंदन लगानेसे जैसे आनंद होता है और कंटक लगनेसे दुःख होता है और उसका जाननेवाला तो जीवही है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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