Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 148
________________ अब वह पुत्र पितासे विपरीत गुणवाला हुआ । जगत् में कहावत है कि "जैसा बाप वैसा बेटा होता है"। यह बात सत्य है, तथापि इस जगह तो पिता निर्विवेकी और कृपण होने पर भी पुत्र विवेकी और उदार हुआ। सात क्षेत्र में धनका सव्यय करता, यह देख कर उसका पिता बहुत दुःख पा कर दुःखी होने लगा और कहने लगा कि-हे वत्स । धन कुछ फोकट नहीं मिलता है । यह तो महा दुःखसे उपार्जन किया हुआ है । यह श्रवण कर पुत्र कहने लगा कि-हे पिताजी ! धन पुष्कल है तुम चिंता मत करो। तब पिताने कहा कि-हे वत्स ! पानीसे भरा हुआ सरोवर भी पशुओंके पी जानेसे सूक जाता है । तब पुत्रने कहा-जब तक अपना पुण्य प्रबल है, तब तक कदापि धन खूटेगा नही । उक्तं चः जइ सुपुत तो धन का संचे, जो कुपुत तो धन का संचे । अचल रिद्धि तो धन का संचे, जो चल रिद्धि तो धन का संचे ॥१॥ लच्छी सहाव चवला तत्थ चवलं च रायसम्माणं । जीवोवि तत्थ चवलो उवयारविलंबणा कीस ॥२॥ अतः जिस प्रकार कृएका पानी, उपवनके पुष्प, और गौका दूध लेते हुए बहुत होता है वैसे ही दान देते हुए लक्ष्मी वृद्धिंगत होती है । इत्यादि पुत्रने समझाया, तथापि सेठ धनका मोह छोडता नहीं और मनमें यह सोचता रहा कि-यह मेरा पुत्र मूर्ख है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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