Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 149
________________ (१४४ ) एकदा कमरे मेंसे चोर लोक धन ले गये । यह सुन कर सेठको मूर्छा आ गइ, वह रोने लगा, जिमनेको भी बैठा नहीं। तब पुत्रने कहा कि-यह लक्ष्मी अलार और चपल है, अतएव तुम भोजन करलो। इस प्रकार बहुत समझा कर भोजन कराया। दूसरी साल में सेठकी स्त्री मोहिनी मर गइ । तब सेठ, स्त्रीके मोहवश जिस प्रकार वज्रके प्रहारसे मनुष्य हुःखी होता है. इसी प्रकार अत्यंत दुःखी हुआ । उसके गुणोंको याद कर करके रुदन किया करता, जिमता भी नहीं। इस दुःखसे सेठ मर गया; परन्तु पुत्र सुज्ञ था, संसारका स्वरूप जान कर शोक नहीं करता और विचार करता कि-मेरे पिताकी मृत्यु मोहके कारणसे हुइ है, अतः जो मोह है वह बिना विष मृत्यु है। यह मोह त्रिदोषके बिना सन्निपात है, यहि मोह न हो तो जीव सर्वदा सुखी ही होता है । फिर विवेक जो है वह विना सूर्य के प्रकाश है, दीपकके विना उजाला है, रत्नके बिना कांति है, पुष्पके विना फल है, अतः विवेक बडी बात है, । ऐसा विचार रखता हुआ विवेकी हो कर धर्म करने लगा। एकदा उस नगरमें श्रुतकेवली पधारे, उनको वंदना करके लक्षणने पृच्छा की कि-महाराज! मेरे पिता मर कर कहां गये होंगे ? गुरु बोले कि-हे वत्त! तेरा पिता धन कुटुम्बका मोह करके अज्ञानके वश एकेन्द्रिय पृथ्वीकायमें उत्पन्न हुआ है। फिर भी अपकाय, तेउकाय, वाउकाय और वनस्पति कायमें बहुत संसार भ्रमण करेगा । यह बात सुन कर वैराग्य पा कर लक्षणने दीक्षा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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