Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 144
________________ (१३९) याचे वह मैं तुझे दूं। तब सेठने पुत्रकी याचना की। गोत्रदेवीने चिंतन किया कि प्रथम तो इस सेठने साधुके समीप पहला व्रत अंगीकार किया है उसका वह यथार्थ पालन करता है या नहीं ? धर्म में दृढ है या नहीं ? जिसकी परीक्षा करुं । ऐसा मनमें विचार करके देवी कहने लगी कि-हे सेठ! तू यदि जीनेकी इच्छा करता है तो एक जीवको मार कर मुझे बलिदान दे, तो मैं तेरेको पुत्र दूंगी। और तू ऐसा न करेगा तो स्त्री भरतार दोनोंका कुशल नहीं है। यह श्रवण कर सेठने कहा कि-तू यह क्या कह रही है ? क्योंकि जो अच्छा आदमी है वह किये हुए नियमका भंग कदापि नहीं करता, और मैंने तो प्राणातिपातका नियम लिया है। अतः पुत्रके विना काम चल जायगा, परन्तु नियमका खंडन मैं नहीं करूंगा। यह सुन कर देवी कोप करके सेठकी स्त्रीकी चोटी पकड कर उसे तलवारसे मारने लगी। स्त्री भी रुदन करती हुइ कहने लगी कि-अरे देवि ! मेरी रक्षा करो! रक्षा करो!! तो भी देवीने उस स्त्रीका मस्तक काट डाला। पुनः सेठको भी कहने लगी कि-तेरेको भी इसी प्रकार काट डालूंगी। फिर कहा कि-अरे दुष्ट ! दुर्बुद्धि ! अपने कुलक्रमागत जीवघात करनेकी व बलि देनेकी जो प्रथा चली आती है उसका तूने नियम क्योंकर लिया ? अतः अब पुत्रकी बात दूर रही, परन्तु तेरे जीवनकाभी संदेह है, इस वास्ते हठ-कदाग्रहको छोड़ और मुझे बलिदान दे! ऐसे देवीके कटु वचन सुने, तथापि सेठ क्षुभित नहीं हुआ। और देवीके प्रति कहने लगा कि-मरना तो एक दफे हैही, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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