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(१००) लका आरंभ करे, तथा अग्निदाह यानि दावानल प्रकटावे अथवा प्राणियोंको अंकित करे लंछित करे, पशुओंको डाम दे, तथा सूक्ष्म वनस्पतिकायका विनाश करे, कूणी वनस्पतिको छेदे, भेदे, तोडे, मोडे, खूटे, चुटे, वह पुरुष भवांतरमें कुष्ट रोगी होता है । जिस प्रकार गोविंदपुत्र गोसलीया मध आदि संचित करने के हेतु पाप करके पद्म सेठका पुत्र गोरा नामक वणिक् महा कुष्टी हुआ (४५) उस गोसलकी कथा कहते है :
. “पेठाणपुर नगरमें गोविंद नामक गृहस्थ रहता था। उसकी गौरी नामा स्त्री थी, उसका गोसल नामक पुत्र महा दुर्व्यसनी था। अकेला वनमें जो कर लकडीसे मधपुडेको गिराता । जहां ससलादिक जीव विशेष रहते, वहां दावानल प्रकटाता-अग्नि जलाता; बेल, गौ; व घोडेको अंकित करता, कोमल नये पौदो व कुंपलको छेदता, उन्मूलन कर डालता, ऐसे कृत्योंको करता हुआ देख कर लोगोंने उसके बापको ओलंभा दिया, तब बापने उसे शिक्षा दी, परंतु वह सब राखमें डालनेकी तरह निष्फल गइ। वह पुत्र मातपिताको भी खेदका कारण हुआ । धर्मकी तो बात भी वह नहीं जानता था । उस असेंमें उसके मातपिता देवशरण हुए। तब तो वह गोसल निरंकुश हाथीकी भांति उच्छृखल हो कर फिरने लगा। एक दिन नगरके उपवनोमें जा कर नारिंगादिकके वृक्षोंको उन्मूलन कर दिये । उसको कोटवालने देखा। बांध कर राजाके पास ले आया । राजाने उसका सर्व धन ले कर छोड दिया। फिर भी एक दिन गुप्तरीत्या राजाके बा
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