Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 138
________________ (१३३) गुरु कहने लगे कि 'हे सेठ ! इसी नगरमें इस भवसे पूर्वके तीसरे भवमें एक जिनदत्त नामक वणिक् रहता था, वह सरल स्वभावी तथा जीवरक्षा करने में सर्वत्र प्रसिद्ध हुआ। इसके अलावा देव, गुरु और संघकी भक्ति करने में भी अग्रसर था जिससे सबलोग उसकी प्रशंसा करने लगे। फिर उसी नगरमें एक शिवदेव नामक वणिक् महामिथ्यात्वी रहता था, वह देव, गुरु और संघके ऊपर द्वेष रख कर उनकी हंसी करता था, मनमें कूड कपट रखता था, वह यद्यपि जिनदत्तका मित्र था, तथापि जीवहिंसा करता था। __ वह मिथ्यात्वी मर कर पहली नरकमें गया और जिनदत्त श्रावक मर कर पहले देवलोक में देवता हुआ । वहांपर देवलोकके सुख भोग कर आयुपूर्ण करके तेरा जगसुंदर नामक बडा पुत्र हुआ और शिवदत्तका जीव नरकसे निकल कर तेरा असुंदर छोटा पुत्र हुआ है। वह देवगुरुके ऊपर द्वेष रखता था, निर्दयी था, जिससे कुरूप हुआ है । अब भी धर्मद्वेषी है, अतः बहुत संसार भ्रमण करेगा।' इस प्रकार गुरुमुखसे पूर्वभव सम्बन्धी वार्ता श्रवण करनेसे जगसुंदरको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे वह हर्षित हुआ। बहुत काल पर्यंत श्रावकधर्मका आराधन कर अंतमें दीक्षा ले कर मोक्षसुखको प्राप्त हुजा ।" ____ अब तेंयालीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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