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(१३४ ) जो जंतुं दंडकसरज्जुखग्गकुतेहिं कुणइ वेयणाओ । सो पावइ निक्करुणो जायइ बहु वेयणा पुरिसो ॥५७॥
अर्थात-जो पुरुष यंत्र, लाठी, दंड, काश, रज्जु, खड्ग, और भाला आदिक शस्त्रके द्वारा अन्य जीवोंको वेदना करे, वह पापी निर्दयी पुरुष जन्मांतरमें अति वेदना पाता है (५७) जिस प्रकार मृग नामक गांवके विजयराजाकी मृगा राणीका लोढा नामक पुत्र था, वह पूर्व भव में अनेक गांवोंका अधिपति था तब उसने अनेक लोगोंको अत्यंत दुःखी किये, जिससे उसि भवमें इसे जलोदर, कुष्टि प्रमुख सोलह महारोग उत्पन्न हुए । मर कर पहली नरकमें गया । वहांसे लोढाके भवमें नपुंसक हुआ। पांचों इंद्रियोंसे रहित अत्यंत 'वेदनाको सहता हुआ महा दुःखी हुआ, जिसकी कथा कहते है:
“ इसी भरतक्षेत्रमें मृग ग्राममें विजय नामक राजा था । उसकी मृगावती नामक राणी थी । उनको संसार सुख भोगते हुए बहुत काल व्यतीत हुआ । ___ एकदा श्रीमहावीर तीर्थकर विहार करते व भव्य जीवोंको प्रतिबोध देते हुए श्रीगौतम स्वामी प्रमुख अनेक साधुओंके परिवारसे परिवेष्टित वहां समोसरे। देवताने तीन गढकी रचना की व आगे फूल पगर भरे। बारह परिषद मिल कर परमेश्वरको बानी श्रवण करने लगी। इस समय एक जात्यंध व कुष्टरोगी पुरुष जिसके हाथ, पैर, नाक, अंगुली प्रमुख अंग सब गल गये थे, जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com