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( १३६ ) मृगावतीको कहा कि तुम्हारा जो पुत्र शिलाके सदृश है उसे देखने के लिये मैं आया हुँ । राणी बोली कि-हे भगवन् ! उस पुत्रको तो कोइ न देखे उस प्रकार हमने धरतीके भीतर गुप्त रक्खा है, सो आपको कैसे मालूम हुआ ? श्रीगौतम बोले कि हमारे स्वामी श्रीमहावीर सर्वज्ञ हैं, उनके कहनेसे विदित हुआ । तब राणीने कहा कि-हे भगवन् ! क्षण भर ठहरिये, भोजनके समय वस्त्राभरणको छोड कर छोटी गाडीमें आहार डाल कर गुहामें मैं जाउंगी, तब आपको भी संग ले जा कर दिखाउंगी। तत्पश्चात् राणी गाडी ले कर श्रीगौतम स्वामीके साथ गुफामें गइ । वहां गौतम स्वामिसे कहा कि-हे भगवन् ! यहां उग्र दुर्गंध है, अतः मुहपत्तिसे मुख नाक बांध कर भीतर आइये । वहां जा कर गुफाका द्वार खोला तब वहां पर ऐसी दुर्गंध आने लगी कि खाया हुआ अन्न भी बाहर निकल जावे । राणीने दरी बिछा कर व उसके ऊपर आहार रख कर लोढाको ऊपर ले आई। उसने आहार संज्ञासे रोमके द्वारा आहार लेना शुरु किया, शीघ्रही वह आहार राध हो कर निकलने लगा। ऐसा दुःख देख कर राणीको वंदन कराके श्रीगौतमस्वामी श्रीमहावीरके पास लौट आये और कहने लगे कि-जैसा दुःख आपने कहा, वैसाही मैंने देखा, अतः अब कहिये कि उसने ऐसा कौनसा बडा पाप किया होगा कि जिससे वह उतना दुःखी हो रहा है ?
प्रभु कहने लगे कि-हे गौतम ! शतद्वार नगरमें धनपति राजाको विजयवर्द्धन नामक मंत्री था, उसको
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