Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 140
________________ (१३५ ) दुःस्वर, दुर्भग हुआ था वह पुरुष लोगोंसे निंदाता हुआ वहां समोसरणमें आया । उसे देख कर गौतमस्वामीने परमेश्वरसे पृच्छा की कि हे भगवन् ! यह जीव किस अशुभकर्मके योगसे महा दुःखी हुआ है ? भगवानने कहा, इसने पूर्वभवमें अनेक पापकर्म किये हैं जिससे दुःखी हुआ है। पुनः गौतमस्वामीने प्रश्न किया कि-हे महाराज ! इस जीवसे भी अधिक दुःखी ऐसा कोइ जीव होगा कि जिसे देख कर लोग दुगंच्छा करें, निंदा करें, निकाल देवें? भगवान बोले कि-हे गौतम ! इसी गांवके राजाका पुत्र जगतमें अत्यंत दुःखी है, क्योंकि वह बधिर, पंगु व नपुंसक है । हाथ, पैर, आंख, कान, नाक, भ्रकुटी, मुख इनमेंसे कोइ भी अवयव उनको नहीं है। उसकी आठ नाडी अंतर्गत वहती है, आठ नाडी बाहर वहती है, आठ नाडी रुधिरकी और आठ राधकी वहती है। महा दुर्गंधित उसका शरीर है, सदैव लोमके द्वारा आहार लेता है। वह यहांही नरकका दुःख भोगता है । वह श्रवण कर गौतमस्वामीको कौतुक उत्पन्न हुआ, तब उसे देखने के लिये कहने लगे कि-हे स्वामिन् ! यदि आपकी आज्ञा होवे तो मैं उसे देख आउं ? प्रभुने आज्ञा दी। गौतमस्वामी राजाके घर आये । राजा राणी दोनों हर्षित हुए। राणी बोली:-महाराज! आज हमारे ऊपर अनुग्रह किया। श्रीगौतमजी मृगावती प्रति बोले कि-मैं तुम्हारे पुत्रको देखना चाहता हूं। तब राणीने अपने चार पुत्र जो गुणवंत थे उनको बुला कर गौतमस्वामीको बतलाये, श्रीगौतमने धर्मलाभ दिया। फिर राणीने कहा कि-आज अनुग्रह किया। तब श्रीगौतमने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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