Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 136
________________ (१३१) सर्व लोगोंको प्रिय ऐसा रूपवंत हुआ, और उसीका दूसरा भाई असुंदर था वह काला, कूबडा दुर्भागी, दुःस्वर लंबकंठ, बडे उदरवाला और कुरूप हुआ। इन दोनों भाइओकी कथा कहते हैं। " पाटण नगरमें देवसिंह नामक धनवंत सेट रहता था, उसकी भार्याका नाम देवश्री था । वह सरल और स्नेहालु थी । उसने एकदिन अधिकांश रात्रि अतिक्रम हुइ तब एक आम्रवृक्षको, शाखा प्रतिशाखा व पुष्पसे भरा हुआ आकाशसे उतरता हुआ और अपने मुखमें प्रवेश करता हुआ स्वप्नमें देखा । फिर जाग्रत हो कर अपने पतिको स्वप्नकी बात कही। पतिने सुन कर स्त्रीको कहा कि तेरेको फलवंत गुणवंत आम्रवृक्षकी तरह अनेक जीवोंके आधारभूत ऐसा पुत्ररत्न होगा । यह सुनकर स्त्री हर्षवंत हुइ । अनुक्रमसे पूर्ण दिन होने पर लक्षणवंत पुत्रका जन्म हुआ। इसके पिताने उत्सव मनाया, कुटुंबको जिमाया, वस्त्रादिकका दान दिया। गुणके अनुसार जगसुंदर ऐसा उसका नाम रखा । सेठका वंछित कार्य सिद्ध हुआ। शालामें पढा, कलाएं सीखा, विनय, विवेक, चातुर्य, औदार्य, गांभीर्य, धैर्यादिक गुणवंत हुआ। वह यौवनवयको प्राप्त हुआ तब अनेक कन्याओंके साथ उसका पाणिग्रहण हुआ । जैनधर्मको अंगीकार करके वह देव-गुरू-संघकी भक्ति करने लगा, दान दे पुण्यभंडार भरने लगा। दीन दुःखीका उद्धार करने लगा। इस भांति कुमार अति गुणवंत हुआ । इ । अनुक्रमपिताने उत्सव मनाया अनुसार एकदा देवश्रीने शेषरात्रिमें दवदग्ध वृक्ष मुखमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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