Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 134
________________ ( १२९ ) वृषभ कर्मकरादिक जीवोंको जो दुःखी करे, वह जीव है गौतम ! मर कर पंगु होता है । जिस प्रकार सुग्रामवासी हल्लुकर्मणीका पुत्र कर्मण नामक था, उसने पूर्वभवमें बैल और हालीको भूखे व प्यासे रक्खे, जिससे वह पंगु हुआ। जिसकी कथा यह है "सुग्राम नामक ग्राम में एक हल्लु नामक कर्षक रहता था। वह दयावंत और संतोषी था। चारा पानीका समय होता तब हल चलानेवाले हल्लुको व बैलोंको छोड़ कर चारा पानी देता, कदाच चारा पानी हाजर न होता तो खुद भी जिमता नहीं, ऐसा नियम किया हुआ था । उसकी हेमी नामक स्त्री थी, वह सरल चित्तवाली थी, उसे कर्मण नामक पुत्र हुआ, वह पूर्वकृत कर्मके उदयसे रोगी व पंगु हुआ । वह जब बड़ा हुआ, तब खेतोंकी चिंता करनेके लिये बैल पर बैठ कर खेतों में जाने लगा । वह बडाही लोभी था जिससे अपने पिताकी अपेक्षा तीनगुणी भूमिकी खेती कराता, हल्लु और बैलोंको समय हो जाने पर भी छुट्टी नहीं देता। चारा पानीकी चिंता भी करता नहीं । जिसके कारण प्रथम वर्ष में जो धान्य उत्पन्न होता था इससे आगेके वर्षोंमें कमती कमती उत्पन्न होने लगा, जिससे क्रमशः वह निर्धन हो गया । तो भी वह पापकर्म करनेसे हटा नहीं । एकदा ज्ञानी गुरु पधारे, उनको वंदना करनेके लिये नगरवासी जनों के साथ ये पिता पुत्र भी गये । पिताने गुरुको पूछा कि हे महाराज ! किस कर्मके योग से यह मेरा पुत्र रोगी, पंगु व निर्धन हुआ है ? तब गुरुने 9 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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