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( १२८ )
इस प्रकार
सर्व साधु निद्रा में थे तब लातोंके प्रहार किये, मुष्टियों के प्रहार किये, उसे वनदेवताने पीटा व पकड़ लिया । फिर उसके दोनों पैरोंको काट डाले । जिसकी व्याधि से पीडित हो कर चिल्लाता हुआ लोगोंने प्रातःकालको देखा, उसका स्वरूप सर्व लोकोंको विदित हुआ । तब सर्व उसकी निंदा करने लगे साधुओंकी अवज्ञा करके, वह पापिष्ट मर कर पहली नरक में जा कर नारकी पणे उत्पन्न हुआ। वहांसे निकल कर किसी दरिद्रीके वहां पासड नामक पुत्र हुआ। वहां पूर्वकृत कर्म के दोष से वह मूक हुआ, ठूंठा हुआ, जन्मतेही माता मर गई, और जब वह आठ वर्षका हुआ तब उसका पिता देवशरण हुआ, दासत्व करके लोगोंका उदरपोषण करने लगा । सर्व लोगोंको अप्रिय हो कर फिर भी संसार में बहुतही परिभ्रमण करेगा |
अब चालीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं
जो वाह निस्संसो छाउद्यापि दुक्खियं जीअं । सीयंतगत संधि गोयम सो पंगुलो होइ ॥ ५४ ॥
अर्थात् - जो पुरुष निःशंकतया किंवा निःस्तृश यानि निर्दय हो कर वृषभादिक जीवोंके ऊपर अधिक भार भर कर उनसे काम ले, जिससे छात यानि अंग जिनके टूट गये हैं, उद्वात अर्थात् जिनका श्वास उंचाही रहता है और शरीरकी संधि जिनकी दुःखित है ऐसे दुःखी
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