Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 135
________________ ( १३० ) कहा कि उसने पूर्वभव में खेती करते हुए भूखे व प्यासे बैलोंसे काम लिया है । उनकी संधि में प्रहार किये है, मारे हैं, अंतमें पश्चात्ताप करने से वह मनुष्यत्व पा कर तेरा पुत्र हुआ है । ऐसी गुरुकी बानीको श्रवण कर हलक्षेत्र के पापकी आलोचना करके पिताने दीक्षा ली और कर्मणने श्रावकधर्म अंगीकार किया, आयु पूर्ण करके दोनोंनें देवलोकके सुख प्राप्त किये " । अब एकतालीसवीं व बेयालीसवीं पृच्छाका उत्तर दो गाथाके द्वारा कहते हैं । सरलसहावो धम्मिकमाणसो जीवरक्खणपरो य । देवगुरुसंघभत्तो गोयम स सुरूवयो होइ ॥ ५५ ॥ कुडिलसहावो पावपिओ जीवाणं हिंसणपरो अ । देवगुरुपडिणीओ अच्चत्तं कुरूवओ होइ ॥ ५६ ॥ अर्थात् - जो पुरुष छत्रदंडकी भांति सरल स्वभावी होता है और धर्ममें जिसका चित्त होता है तथा जो मनुष्य जीवकी रक्षा करनेमें तत्पर होता है तथा देव गुरु व धर्मकी भक्ति करनेमें तत्पर रहता है वह जीव हे गौतम ! रूपवान् होता है ( ५५ ) तथा जो जीव स्वभावसे कुटिल होता है तथा पापप्रिय होता है अर्थात् पापकर्ममें जिसकी रूचि होती है, जीवहिंसा करने में तत्पर तथा देव और गुरुके ऊपर द्वेष रक्खे और देवगुरुका प्रत्यनीक होता है वह पुरुष मर कर अत्यंत कुरूपवंत होता है ( ५६ ) जिस प्रकार पाटण नगर में देवसिंह सेठका पुत्र जगसुंदर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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