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(१०८) रूपसे उत्पन्न हुआ। वह भी काना,कुरूप, काला और दुर्भागी हुआ। वह राजालोगोंका दासत्व करता और मनुष्यको शूली 'पर चढाकर वध करनेका कार्य करता। वहांसे मृत्यु पा कर पांचवी नर्कमें नारकी हुआ। वहांसे निकल कर मत्स्य हुआ । वहांसे पुनः नरकमें गया। इस प्रकार अनेक भवभ्रमण करके जब मनुष्यगतिमें उत्पन्न होता तब भी नीच कूल में ही उत्पन्न हो कर दासत्व करता । पक समय वह अज्ञानतपके बलसे ज्योतिषी देवमें उत्पन्न हुआ। वहांसे चव कर पद्मखंड नगर में कुंददंता नामकी वेश्या के वहां पुत्र रूपसे उत्पन्न हुआ। उसका नाम मदन रक्खा । वहां बहुत्तर कला सीखा । परोपकारी, दक्ष, दयालु, लज्जालु, गंभीर, सरल, प्रियवादी और सत्यवादी हुआ । जैसे उत्तम गुण उसमें थे वैसेही गर्वभी नहीं करता । जब लोक उसे गणिकाका पुत्र कह कर बुलाते तब दुःखी हो कर सोचता कि, मैंने पूर्वभवमें पाए किये हैं, जिससे विधाताने मेरेको गणिकाके वहां जन्म दिया। जिससे मैं इतने गुणोंका धारक होने पर भी नातिहीन हुआ हुँ। अथवा अमृतमय जो चंद्रमा है वह भी कलंकित है तथा रत्नाकर जो समुद्र है वह अनेक रत्नोंसे भरपूर होने पर भी उसका पानी खारा है, इसी प्रकार जहां गुण होते हैं वहां दोष भी होते ही हैं।
एकदा उस नगरमें केवली भगवान् पधारे । उनको वंदनाके लिये मदन गया । वंदन कर उसने पूंछा कि-है भगवन् ! मेरेमें कुछ उत्तम गुण होने पर भी मैं किस कर्मके उदयसे हीन जातिमें उत्पन्न हुआ हुँ ? भगवानने पीठले भवोंका स्वरूप कह सुनाया और कहा कि तूने
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