________________
( १०९ )
जातिकुलका मद किया तथा परनिंदा की, जिसके पापसे गणिका के वहां उत्पन्न हुआ । तब मदनने कहा कि हे भगवन् ! यदि मेरेमें योग्यता हो तो मुझे दीक्षा दीजिये । केवलज्ञानीने उसे योग्य समझ कर दीक्षा प्रदान की । साधु समाचारी सीखाई। फिर दुष्कर तपकरके व अनशन करके देवता हुआ । अनुक्रमसे कर्म क्षय करके मोक्षसुखको प्राप्त किया ।
""
अब तेतीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथा के द्वारा कहते हैं
विणयविहीणो चरित्तवज्जिओ दानगुणविकत्तो य । मणसा य दंडजुत्तो पुरिसो दरिद्दिज्जो होइ || ४८||
अर्थात् - जो पुरुष विनय करके हीन होता है तथा चारित्रवर्जित एवं दान गुणसे वियुक्त होता है यानि दानगुणरहित होता है तथा मनोदंड, वचनदंड और कायदंड इन तीन दंडों करके युक्त यानि मनसे आर्त्तध्यान रोद्रध्यान चितवे, एवं वचनसे दुर्वचन बोले, लोगोंको कुबुद्धि देवे, और कुचेष्टा करे, ऐसा पुरुष मर कर दरिद्री होता है ॥ ४८ ॥
-
जैसे हस्तिनापुर में सुबंधु सेठका मनोरथ नामक पुत्र अविनीत व अविरति दशा में हुआ । इसका निष्पुण्य ऐसा नाम जिसकी कथा कहते हैं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
मर कर दरिद्री रक्खा गया था ।
www.umaragyanbhandar.com