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(११७) है-निरोगी होता है (५१) इन दोनोंके ऊपर अट्टणमल्लकी कथा कहते हैं।
"उज्जयनी नगरीमें जितशत्रु राजा राज्य करता था । उसके पास अट्टणमल्ल नामक महामल्ल था। इधर सोपारा नगर में सिंहगिरि नामक राजा था, वह प्रतिवर्ष मल्लयुद्ध करवाता, मल्लयुद्ध में जो कोइ जीतता उसको बहुत धन देता था । अट्टणमल्ल दूसरे मल्लोको जीत कर वहांसे शिरपावमें बहुत धन ले आता था। एकदा सिंहगिरि राजाने सोचा कि-उजयनीका मल्ल आ कर प्रतिवर्ष जीत जाता है यह अच्छा नहीं है, अत: उसका कुछ उपाय करें। फिर एक बलवान् माछीको देखकर राजाने उसको अपने पास रख कर मल्लयुद्ध सीखाया। मलीदा खिला पिला कर पुष्ट किया। फिर मल्लमहोत्सवके दिन अट्टणमल्लने आ कर युद्ध किया उसको तरुण माछीने पराजित किया । राजाने माछिको द्रव्य दिया । अट्टण वापिस लौटा । उसने सोरठ देशमें एक महा बलवान् फलिह नामक कोलीको देखा, उसको कुछ धन देना निश्चित करके उज्जयनीमें ले गया। वहां उसे मल्लविद्या सीखाइ । पुनः सोपारा नगरमें परीक्षाके समय ले आया, वहां सभामें मल्लमहोत्सव सम्बन्धी वाजित्र बाजते, शंख पूरते, बंदिजन जय जय बोलते, फलिहमल्ल और माछीमल्ल ये दोनों परस्पर झूझते, नाचते, हसते, एक दूसरेको मुष्टिप्रहार देते और गिरते हुए अपने २ स्थानक प्रति गये। वहां अट्टणमल्लने फलिहमल्लको पूछा कि-तेरेको युद्ध करते हुए कहिं अंगमें पीडा हुइ हो तो कह । उसने यथार्थ कह दिया, कि अमुक २ अंगमें दर्द होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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