Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 124
________________ ( ११९ ) अर्थात् जो धूर्त, हस्तादि लाघवसे झूठे तो व झूठे मापसे तथा कुंकुम कपूर मजीठ भेलसेल करके डे करियाका व्यवसाय यानि व्यापार करता है, एवं निकृतिबहुल अर्थात् मायावी हो कर बहुत पाप करता है वह पुरुष भवान्तर में यदि मनुष्य होता है तो भी हीन अंगवाला होता है । जिस प्रकार ईश्वर सेठका पुत्र दत्त नामक था, वह पूर्वभवमें कूडे तोल, कूडे माप और कूडे करियाणेका व्यापार करनेसे पापके परिणामसे हस्तादिक अंगसे होन हुआ । उसकी कथा इस प्रकार है: - CC क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर में पढाये, उनकी विपुल नामक सेठ रहता था । उसकी प्रेमला उसको चार पुत्र हुए, उन चारोंको शादी की। सेठ खुद वृद्ध हुआ, उसके घर में द्रव्य होने पर भी लोभके वश अनेक व्यापार करता, परन्तु लक्ष्मी किसीको देता नहीं, किसीको दान देनेका तो स्वप्नमें भी उसको विचार नहीं आता था । आदिदेव ईश्वर नामक स्त्री थी । एक दिन सेठ जिम कर गवाक्षमें बैठा था, उस समय चौथे पुत्रकी स्त्री, जो कि अत्यंत गुणवती थी और जो सुपात्र में दान देनेकी इच्छा रखती थी, वह स्त्री बर्तन धोने के लिये घर के बाहर चोकमें बैठी हुई थी; उस अर्से में आठ वर्षकी उम्रका कोइ नवदीक्षित साधु इर्यासमिति शोधते हुए गौचरीके लिये सेठके वहां आया । उन्हें देख कर खीने कहा चेला खरी सवार धर्मिणि वार न जाणीए । तुम लो अनथी आहार अम्ह घर वासी जीमीए ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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